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"अश्रुत पूर्व" में बताया गया है कि एक नगर में एक परिवाजक सोने का पात्र लेकर भिक्षाटन करता था। उसने घोषणा की कि जो कोई मुझे अश्रुतपूर्व बात सुनायेगा, उसे में इस स्वर्ण पात्र को दे दूंगा। कई लोगों ने बहुत-सी बातें सुनायीं, पर उसने उन सबों को श्रुत--पहले सुनी हुई है--कहकर लौटा दिया। एक श्रावक भी वहां उपस्थित था, उसने जाकर परिवाजक से कहा--"तुम्हारे पिता ने मेरे पिता से एक लाख रुपये कर्ज लिये थे। यदि मेरा यह कहना आपको श्रुतपूर्व हैं, तो मे
तो मेरे पिता का कर्ज आप लौटा दीजिए और अश्रुतपूर्व है तो आप अपना स्वर्णपात्र मुझे दे दीजिए।" लाचार होकर परिव्राजक को अपना स्वर्णपात्र देना पड़ा। इस कथा में श्रावक की बुद्धि का चमत्कार प्रधान रूप से दिखलाया है।
___ "ग्रामीण गाड़ीवान" कथा में धूर्तों के बुद्धि कौशल की सुन्दर अभिव्यंजना की गयी है। "इतना बड़ा लड्डू" दृष्टान्त कथा भी ठग और धूर्तों की बुद्धि का परिचय प्रस्तुत करती है। "चतुर रोहक" में रोहक की बुद्धि का चमत्कार विभिन्न रूपों में अंकित किया ग
भयकुमार" कथा में अभयकुमार की चतराई और उसके बद्धि व्यापार का बड़ा सुन्दर परिचय उपस्थित किया गया है। घटनाओं के चमत्कार और उनके उतार-चढ़ाव पाठक का मन बहलाव करने के साथ उसे सोचने का भी अवसर देते हैं।
इन कथाओं में औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा और पारिणामिकी इन चारों प्रकार की बुद्धियों की विशेषताएं प्रकट की गयी है। बिना देखें, बिना सुने और बिना जान विषयों को उसी क्षण में अबाधित रूप से ग्रहण करना तथा तत्सम्बन्धी चमत्कारों को कथाओं द्वारा दिखलाना ही इन कथाओं का उद्देश्य है।
आजकल की जासूसी कहानियों की पूर्वजा इन बुद्धि चमत्कार प्रधान कथाओं को माना जा सकता है। इस श्रेणी की कथाओं में मनोरंजन के साथ जीवन के गम्भीर तत्त्व भी निहित हैं। यह सत्य है कि इस कोटि की कथाओं में दैनिक जीवन की समस्याओं पर प्रकाश नहीं डाला गया है। हां, मनोरंजन के तत्त्व इतने अधिक है, जिससे पाठक उतने क्षण के लिए, जितने क्षण कथा के अध्ययन में व्यतीत करता है, अपने में खोया रह सकता है। बुद्धि विलास और बुद्धि विकास के इतने विभिन्न रूप शायद ही किसी कथा साहित्य में होंगे। इनका प्रधान लक्ष्य ज्ञान के विभिन्न भेदों की स्वरूप प्रतिष्ठा के साथ कुतूहलपूर्ण घटनाओं का सृजन करना है।
प्रतीक प्रधान कथाओं में किसी तथ्य का प्रतीकों द्वारा लाक्षणिक रूप खड़ा किया गया है। इनमें स्थूल पात्रों के साथ कोई आधारभूत घटना भी रहती है, परन्तु इनमें स्थल घटनाओं के द्वारा किसी सूक्ष्म तत्त्व अथवा किसी सिद्धांत का निदर्शन किया जाता है। इनमें प्रस्तुत अर्थ के स्थान में अप्रस्तुत अर्थ की प्रधानता होती है। इनमें घटना या क्रिया के स्थान पर भावों का प्राधान्य दृष्टिगोचर होता है। यद्यपि इस श्रेणी की ररिभद्र की लघ कथाएं बहत थोड़ी है, पर जो प्राप्त है, वे सुन्दर हैं। प्रतीकों भावों की अभिव्यंजना में इन्हें अपूर्व सफलता प्राप्त हुई है। संवाद तत्व इस कोटि की कथाओं में सुन्दर नहीं बन पड़ा है।
धर्मतत्त्वों की अभिव्यंजना की दृष्टि से इस कोटि की कथाओं का मूल्य अत्यधिक है। व्रत, चरित्र, आत्मस्वरूप और संसारस्वरूप की अभिव्यंजना इन कथाओं में सुन्दर
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