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१८२ जिस योगी ने क्रोधी सर्प को अपने एक ही वाक्य से शांत बनाया था, वह योगी दूसरा कोई नहीं, स्वयं भगवान महावीर ही थे।
"मेघकुमार" की कथा में मानवृत्ति, "गालब" कथा में चौर्यवृत्ति, "तोते की पूजा" में भावशुद्धि, "नरसुन्दर" में तीवभक्ति एवं "वृद्धा नारी" में विशुद्धभक्ति का विश्लेषण किया गया है। घटना, संवाद और कथानक को दृष्टि से भी ये कथाएं साधारण हैं। व्यंग्य प्रधान वे कथाएं हैं, जिनमें उपदेश तत्त्व को सीधे रूप में न कहकर संकेत या व्यंग्य के रूप में कहा गया हो। चरित्र, कथानक आदि सभी कथातत्व इस कोटि की कथाओं में प्रायः विद्यमान है, पर प्रधानता व्यंग्य की रहती है। इस श्रेणी की हरिभद्र की निम्न कथाएं हैं:--
(१) संचय (दहागा० ५५, पृ० ७०)। (२) हिंगुशिव (६०हागा० ६७, पृ० ८७)। (३) हाय रे भाग्य (दहा०, पृ० १०६)। (४) स्त्री-बुद्धि (दहा०, पृ० १९३)। (५) भक्ति-परीक्षा (दहा०, पृ० २०८)। (६) कच्छप का लक्ष्य (उप०गा० १३, पृ० २१)।
(७) युवकों से प्रेम (उप०गा० ११३, पृ० ८४)। संख्या और मार्मिकता की दृष्टि से हरिभद्र की लघु कथाओं में बुद्धि चमत्कार प्रधान कथाओं का स्थान महत्वपूर्ण है। इस श्रेणी की कथाओं का शिल्पविधान नाटकीय तत्त्वों से सम्पृक्त रहता है। इतिवृत्त, चरित्र आदि के रहने पर भी प्रधानतः बुद्धि चमत्कार ही व्यक्त होता है। इस कोटि की प्रमुख कथाएं निम्न हैं:--
(१) अश्रुत पूर्व (दहा०, पृ० ११२)। (२) ग्रामीण गाड़ीवान (दहागा० ८८, पृ० ११८)। (३) इतना बड़ा लड्डू (दहा०, पृ० १२१)। (४) चतुर रोहक (उप०गा० ५२--७४, १० ४८--५५)। (५) पथिक के फल (उपगा० ८१, पृ० ५८)। (६) अभय कुमार (उप०गा० ८२, पृ० ५९)। (७) चतुर वैद्य (उप०गा० ८४, पृ० ६१)। (८) नारी की गम्भीरता (उप०गा० ८५, पृ० ६१)। (९) हाथी की तौल (उप०गा० ८७, पृ० ६२)। (१०) मंत्री की नियुक्ति (उप०गा० ९०)। (११) व्यन्तरी (उप०गा० ९३, पृ० ९४)। (१२) मंत्री की चतुराई (उप०गा० ९४, पृ० ६५) । (१३) द्रमक (उप०गा० ९७, पृ० ६७)। (१४) धोखेबाज मित्र (उप०गा० १०१, पृ० ६९)।. (१५) अध्ययन के साथ मनन (उप०गा० १०७, पृ० ७२)। (१६) कल्पक की चतुराई (उप०गा० १०८, पृ० ७३)। (१७) मृगावती कौशल (उप०गा० १०८, पृ० ७३)। (१८) अमात्य निर्वाचन (उप०गा० १५०-१५९, पृ० १३५)।
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