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इस कथा में अनेक प्रतीकों का सार्थक, संदर्भयक्त प्रयोग भी इसके शिल्पबोध की एक महत्त्वपूर्ण इकाई है। ये सारे प्रतीक अन्यापदेशिक शैली में ढलते आये हैं। इनके द्वारा कथा की घटनामों में अर्थमत्ता और व्यक्तित्व का आविर्भाव होता है । गर्भ में सिंह या सांप का स्वप्न इस सांकेतिक अर्थ की सूचना देता है कि गर्भ में स्थित बालक अपने माता-पिता का विघातक होगा। गर्भावस्था का दोहद भी आगामी घटनाओं की सूचना देता है। कुसुमावली को राजा सिंहकुमार की प्रांतों के भक्षण का उत्पन्न हुना। इस दोहद से आगामी समस्त घटनामों की सचना मिल जाती
मधविन्द दष्टान्त भी एक प्रकार का प्रतीक है। इस दष्टांत से मानव जीवन की यथार्थता अभिव्यक्त होती है। जीव, प्राय, कषाय, गतियां प्रादि को अभिव्यंजना प्रतीकों के माध्यम से की गयी है ।।
इस कथा में निरूपित प्रेम तत्व भी अपनी विशिष्ट महत्ता रखता है। प्रेम को जिस भारतीय पीठिका पर रखकर इस कथा में परखा गया है और उसका विकास दिखलाया गया है, वह प्रेम की शिष्ट और स्वाभाविक अनुभूति ही कही जायगी। भारतीय प्रेम-पद्धति में प्रेम का प्रथम स्फुरण नारी हृदय में होता है, पश्चात् पुरुष प्रेम करता है। प्राप्ति या प्रयास दोनों ओर से किया जाता है। दोनों ही एक दूसरे को प्राप्त करने के लिये उत्सुक रहते हैं। इस कथा में प्रेम का उद्भास अधिक संयत, नैतिक और स्वाभाविक हुआ है। कुसुमावली को हृदय तरंगों को उद्वेलित करने में सिंहकुमार का व्यक्तित्व सफल होता है। उसकी विरह अवस्था और संयोग अवस्था के मनोहर चित्र अंकित किये गये हैं।
अन्तर्कथा के रूप में आयी हुई अमरगुप्त की कथा मुख्य कथा के विकास को स्वानुरूप स्थापत्यगत समानता देती है । कथा के विकास के लिये अवान्तर या उपकथानों का प्रक्षेपण हरिभद्र को अपनी पद्धति है । ये इन अवान्तर कथाओं के द्वारा प्रधान पात्र में सांसारिक नश्वरता और वैराग्य को चेतना जागत करते हैं। अवान्तर कथाएं सर्वदा एक ही रूप में सुनिश्चित स्थापत्य के अनुसार आती है। नायक का साक्षात्कार प्रात्मज्ञानी मुनि से होता है, जो अपनी विरक्ति की आत्मकथा कहता है । यह उपकथा या अवान्तर कथा भी जन्म-जन्मान्तर के कथासूत्रों में गुथी रहती है। प्रस्तुत अमरगप्त को कथा बड़ी रोचक हैं, यह अनक भवों का लेखा-जोखा उपस्थित करती है । यह कथा मलभाव का चित्रण करते हए अपनी विशिष्टता के कारण मलकथा के साथ प्रभावान्वयन का कार्य करती है। एकोन्मुखता के साथ प्रभावान्विति पर पहुँचना ही इस अवान्तर कथा का लक्ष्य हैं । ___शैली की दृष्टि से इस भव को कथा तर्कपूर्ण व्यावहारिक शैली में लिखी गयी है । वर्णन प्रौढ़ और प्रांजल है । स्वप्न में देखे गय सिंह की प्राकृति, रूप, तेज और प्रभाव का चित्रात्मक वर्णन कथा की गति को तथ्य विश्लेषण के साथ निश्चित प्रभाव की ओर ले जाता है ।
उपर्युक्त गुणों के अतिरिक्त इस कथा में निम्न त्रुटियां भी वर्तमान हैं।
१ । अवान्तर कथा में पायी हुई पूर्वभवावलि कथारस को क्षीण करती है । २ । सिद्धान्त निरूपण में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दावली से कथा-रसिक पाठक अब
जाता है ।
१--सं० पृ० २११३६--१३६ ।
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