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३ । इतिवृत्त में पौराणिकता का यथेष्ट समावेश रहने से प्राधुनिक पाठक को घटनातन्त्र पर विश्वास नहीं हो पाता है ।
४ । घटनाओं की चरम परिणति नुकीली नहीं है ।
५ । श्रानन्द के चरित्र का एक ही पक्ष उपस्थित किया गया है । न्तर की शत्रुता रहने पर भी माता के प्रति स्नेह का प्रभाव है । उसके चरित्र का एकांगी विकास कथा को विरूप बनाता है ।
रहना
तृतीय भवकथा : जालिनी और शिखिन्
जालिनी और शिखिन् की कथा की प्रेरणा और पिण्डभाव मूलतः जीव के उसी धातु विपर्यय और निदान के चलते हैं, जो इन धार्मिक कथाओं में सर्वत्र अनुस्यूत हैं । मध्य की कथा प्रजित की कथा में इसी मूल, इसी मर्म को घटनाओं की परिपाटी के द्वारा उद्घाटित किया गया है । कथा इस मर्म से प्रकाशित होकर पुनः वापस लौट आती है और आगे बढ़ती है । आगे बढ़ने पर विरोध के तत्व आते हैं और इस तरह गल्पवृक्ष के मूल से लेकर स्कन्ध और शाखाओं तक के अन्तर्द्वन्द्व का फिर शमन होता है । ( जैसे पिंगकेश और प्राचार्य के संवाद ) । ऐसा अन्तर्द्वन्द्व सामान्यतः बौद्धिक या दार्शनिक ही होता हैं, रागात्मक नहीं । नारिकेल वृक्ष की जड़ भूगर्भ में बहुत दूर तक है, इसी को लेकर जिज्ञासा होती है और इस तरह उस भूगर्भ के मर्म से प्रत्यावर्तित होकर कथा फिर वृक्ष के स्कन्धों और शाखाओं की ओर बढ़ती है । कथा पुनः प्रतिजिज्ञासा के द्वारा उत्तेजित होकर बुद्धि से कर्म या भाव पर प्राकर समाप्त होती है । श्रतः इस कथा को मध्य मौलिक या अवान्तर मार्मिक कहा जायगा । इस अवान्तर मामिकता का आशय यह है कि कथा का मूल मध्य में निहित है । पाश्चात्य आलोचकों का यह कहना है कि अवान्तर या उपकथाओं का जमघट कथान्विति के साथ केवल कथानक की शीघ्रता, एकान्त पूर्वाग्रह और मात्रत्वचा स्पर्श का ही द्योतक है । बीच का वृत्त स्वतन्त्र या क्षेपक के रूप में शोभा के लिये प्रयुक्त है । हम इस कथन में इतना और जोड़ देना चाहते हैं कि इस प्रकार के कथास्थापत्य में कथा का रस प्रवान्तर मामिकता या मध्य मौलिकता में निहित रहता है । देहली दीपक न्याय के समान मध्य में निहित मौलिक सिद्धान्त कथा के पूर्व और उत्तर भाग को भी प्रकाशित करते हैं ।
इस कथा में देश, नगर और पितृपरम्परा को लेकर जो व्यक्तिवाचक संज्ञाओं का बाहुल्य हैं, वह कोई निरर्थक जमघट नहीं हैं । रूपक कथाओं की तरह नाम तो साँकेतिक हैं ही, पर इनके चलते कथानों में नादतत्त्व आ गया है । मिल्टन की तरह व्यक्तिवाचक संज्ञाओं के द्वारा एक विशिष्ट वातावरण की सृष्टि होती है -- कौशल, परविदेह', विजयसिंह, अजितसेन, बुद्धिसागर, शुभंकरा, श्रानन्द, जालिनी आदि
१--धरापविद्धदीपायवो--स० पृ० ३।१६६ ।
२-- स० पृ० ३ । १६२ ।
३- वही, पृ० ३।१६२ ।
४ -- वही, पृ०
३।१६७ ।
३।१६२ ।
३।१६२ ।
५- - वही, पृ०
६ -- वही, पृ० 3-- -वही, ८-वही, पृ० ३।१६६ ।
३।१६२ ।
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पिता से जन्मा
खटकता
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