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८ । प्राकृत कथाओं में विभिन्न धर्म, सम्प्रदाय, राष्ट्र, समाज, वर्ण श्रादि के विविध चित्र, नाना प्रकार के श्राचार, विचार, व्यवहार, सिद्धान्त, आदर्श, शिक्षण, संस्कार, रीति, नीति एवं राजतन्त्र, वाणिज्य-व्यवसाय, अर्थोपार्जन आदि भारत के सांस्कृतिक इतिहास का सर्वांगीण और सर्वतोमुखी मानचित्र तैयार करने के उपकरण विद्यमान हैं ।
६ । प्राकृत कथाओं में केवल अभिजातवर्ग के ही पात्रों को स्थान नहीं दिया है, श्रपितु मध्यमवर्गीय और निम्नश्रेणी के पात्रों के चरित्र भी चित्रित हैं । प्राकृत के ये पात्र भारतीय भाषाओं में पहुँचे हैं । तात्पर्य यह है कि साहित्य अभिजातवर्ग से निकल कर सर्वसाधारण की संपत्ति बना है ।
१० । प्राकृत कथाओं का उद्देश्य मात्र रस का संचार करना ही नहीं है, प्रत्युत व्यक्तित्व का निर्माण और चरित्र का उत्कर्ष दिखलाना है ।
मानव
११ । प्राकृत कथाओं में वर्णाश्रम धर्म के प्रति वगावत की गयी हैं । समत्व का सिद्धान्त तथा जन्म जन्मान्तर के संस्कारों का अमिट प्रभाव और कर्मफल की त्रिकालावाधिता सिद्ध की गयी है ।
१२ । कथानकों के विकास में चमत्कारिक घटनाओं और अप्रत्याशित कार्य - व्यापारों के योग द्वारा मनोवैज्ञानिक द्वन्द्वों की स्थितियों का चित्रण किया गया है ।
१३ । लोक कल्याण के साथ मनोरंजन तत्व का भी यथेष्ट सम्मिश्रण हुआ है । १४ । कथोपकथन के साथ विवरणों को भी महत्ता दी गयी है ।
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