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भवदेवराज कथा, वात्सल्य गुण के लिए धनसाबुकथा, प्रभावनातिचार के लिए अचलकथा, पंचनमस्कार के लिए श्रीदेवनूप कथा, जिनबिम्बप्रतिष्ठा के लिए महाराज पद्म की कथा, जिनपूजा के लिए प्रभंकर कथा, देवद्रव्य रक्षण के लिए भ्रातृद्वय कथा, शास्त्र श्रवण के लिए श्रीगुप्त कथा, ज्ञानदान के लिए धनदत्त कथा, अभयदान का महत्त्व बतलाने के लिए जयराजर्षि कथा, यति को उपष्टम्भ देने के लिए सुजयराजर्षि कथा, कुगृहत्याग के लिए विलोमापाख्यान, मध्यस्थ गुण की चिन्ता के लिए अमरदत्त कथा, धर्मार्थव्यतिरेक चिन्ता के लिए सुन्दर कथा, आलोचक पुरुष व्यतिरेक के लिए धर्मदेव कथा, उपायचिन्ता के लिए विजयदेव कथा, उपशान्त गुण की अभिव्यक्ति के लिए सुदत्ताख्यान, दक्षत्व गुण की अभिव्यक्ति के लिए सुरशेखरराजपुत्र कथा, दाक्षिण्य गुण की महत्ता के लिए मयदेव कथा,
गुण की चिन्ता के लिए महेन्द्रनृप कथा, गाम्भीर्यगुण की चिन्ता के लिए विजयाचार्य कथा, पंचेन्द्रियों की विजय बतलाने के लिए सुजससेठ और उसके पुत्र की कथा, पैशन्य दोष के त्याग का महत्व बतलाने के लिए धनपाल - बालचन्द्र कथा, परोपकार का महत्व बतलाने के लिए भरत नृप कथा, विनयगुण की अभिव्यंजना के लिए सुलसाख्यान, श्रहिंसाव्रत के स्वरूप विवेचन के लिए यज्ञदेव कथा, सत्याणुव्रत के महत्त्व के लिए सागरकथा, चौर्या व्रत के लिए परूशराम कथा, ब्रह्मचर्याणुव्रत के लिए सुरप्रिय कथा, परिग्रहपरिमाणुव्रत के लिए धरण कथा, दिग्व्रत के लिए भूति और स्कन्द की कथा, भोगोपभोगपरिमाणव्रत के लिए मेहश्रेष्ठ कथा, अनर्थदण्डत्याग के लिए चित्रगुप्त कथा, सामायिक शिक्षा के लिए मेघरथ कथा, देशावकाश के लिए पवनंजय कथा, प्रौषधोपवास के लिए ब्रह्मदेव कथा, प्रतिथिसंविभागव्रत के लिए नरदेव - चन्द्रदेव की कथा, द्वादशावर्त और वन्दना का फल दिखलाने के लिए शिवचन्द्रदेवकथा, प्रतिक्रमण के लिए सोमदेव कथा, कायोत्सर्ग का महत्त्व बतलाने के लिए शशिराज कथा, प्रत्याख्यान के लिए भानुदत्त कथा, एवं प्रवज्या के निमित्त उद्योग करने के लिए प्रभाचन्द्र की कथा आयी है ।
इस कथा ग्रन्थ की सभी कथाएं रोचक हैं । उपवन, ऋतु, रात्रि, युद्ध, श्मशान, राजप्रासाद, नगर आदि के सरस वर्णनों के द्वारा कथाकार ने कथा प्रवाह को गतिशील बनाया है । जातिवाद का खंडन कर मानवतावाद की प्रतिष्ठा इन सभी कथाओं में मिलती हैं। जीवन शोधन के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति आदर्शवादी हो। इस कृति की समस्त कथाओं में एक ही उद्देश्य व्याप्त है। वह उद्देश्य है आदर्श गार्हस्थिक जीवनयापन करना । इसी कारण शारीरिक सुखों की अपेक्षा श्रात्मिक सुखों को महत्त्व दिया गया
। भौतिकवाद के घेरे से निकालकर कथाकार पाठक को आध्यात्मिक क्षेत्र में ले जाता हैं । सम्यक्त्व, व्रत और संयम के शुष्क उपदेशों को कथा के माध्यम से पर्याप्त सरस बनाया है । धार्मिक कथाएं होने पर भी सरसता गुण अक्षुण्ण है । कथानकों की क्रमबद्धता बहुत ही शिथिल है। टेकन क भी पुरानी हैं। हां, धर्मकथाकार होने पर भी अपनी सृजनात्मक प्रतिभा का परिचय देने में लेखक पूरा तत्पर हैं ।
साहित्यिक महत्त्व की अपेक्षा इन कथाओं का सांस्कृतिक महत्त्व अधिक है । जिस गुण या व्रत की महत्ता बतलाने के लिए जो कथा लिखी गयी है, उस गुण या व्रत का स्वरूप, प्रकार, उपयोगिता प्रभृति उस कथा में निरूपित है । मुनि पुण्यविजय जी ने अपनी प्रस्तावना में इस ग्रन्थ की विशेषता बतलाते हुए लिखा है "बीजा कथाकोश ग्रंथोमां एकनी एक प्रचलित कथा संग्रहाएली होय छे त्यारे श्रा कथासंग्रहमां एक नथी, पण कोई-कोई श्रापवादिक कथाने बाद करीए तो लगभग बधीज कथाओं अपूर्वज छ, जे बीजे स्थल भावयज जोवामां श्रव प्राबधी धर्मकथाओं ने नाना बालकोवी बालभाषामां उतारवामां श्रावे तो एक सारी जेवी बालकथानी श्रेणि तैयार थइ शके तेम छे" ।
sent कुछ कथाएं कार्थी हैं। इनमें रसों की अनेकरूपता और वृत्तियों की विभिन्नता विद्यमान है । नागदत्त के कथानक में कुलदेवता की पूजा के वर्णन के साथ
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