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मूलकथा के साथ द्वीपजात पुरुष कथा, विजयधर्म- धनधर्म नवभवकथा, कृष्णगृहपति कथा, अंग-अंगनृप कथा, पातालकन्या कथा, सुदर्शना पूर्वभव कथा, वसन्तसेना- देविला कथा, हस्तिपूर्वभव कथा, अहिच्छत्र कथा, ईश्वरतप कथा, जयमंगल कथा, द्रोण कथा, मुनिपूर्वभव कथा, ज्वलन द्विज कथा, श्रीदत्त कथा, विजयानन्द कथा, विजयवे गकुमार कथा, नरवाहननृप कथा, शिवदत्त प्रधान कथा, नन्द-स्कन्द कथा, शिवनृपादि कथा, देवलकथा, नागदत्तकथा, जक्षिणी कथा, धनदेव धनवती कथा, विक्रमसेन कथा, गृहपति -संत कथा, सोमिलद्विज कथा, शंकर केशव कथा, विजयवल नृपविजयचन्द्रकुमार कथा, लक्ष्मीधर कथा, धनशर्मा कथा, कपिल कथा, सुरेन्द्रदत्त कथा, ब्रह्मदत्त कथा, बाहु-सुबाहु कथा, सोमिलवृत्तान्त, शिवादिमुनि कथा एवं पुंजशीलवती कथा भी इसमें निबद्ध हैं ।
कथा साहित्य की दृष्टि से यह रचना सुन्दर है । कथानकों की योजना पूरी कुशलता के साथ की गयी है । इस कृति में अनेक नवीन कथाएं आयी हैं, जिनका अस्तित्व अन्य चरित या कथाग्रन्थों में नहीं मिलता हूँ । अतः इसकी कथातत्त्व संबंधी विशेषताओं से प्रभावित होकर मणिविजय गणिवर ग्रंथमाला के कार्य सम्पादक श्री नालचन्द्र जी ने लिखा है -- "अन्यच्चान कके वलसूरिवराणां भिन्न-भिन्न विषय प्रतिपादका वैराग्यखानयो: धर्म देशना : प्राचीनश्चाश्रुतपूर्वा : कथा स्थल - स्थले प्रदर्शिताः । तथैव चास्मिंचरित महान् विषयोऽयं यत् श्रीमद्भगवतां शुभदत्तादिदशगणधराणां पूर्वभववृत्तान्तावँ राग्यजनकरीत्या भिन्न-भिन्न गुणनिरूपका : कथितास्सन्ति येऽन्यचरित्रेषु न दृश्यन्ते, यान् श्रुत्वा भव्यजनानां चिप्रसन्नताबोध वृद्धिश्च भवेत् । कथ्यते च चरित्रमिदं परं वास्तविकरीत्या नेकपदार्थविज्ञान प्रतिपादकत्वात् ग्रामनगरनृपादिवर्णात्मकत्वाच्चायं ग्रन्थोऽनुमीयते । "
इस चरित ग्रन्थ में चरित्र की विराट् स्थापना की गयी है । पात्र सजीव प्रतीत होते हैं । उनके क्रिया-कलाप दर्शनीय नहीं है, बल्कि अनुकरणीय हैं । कथातत्वों के साथ इसमें सांस्कृतिक सामग्री भी प्रचुर परिमाण में संकलित है । हस्तितापस, हाथियों की विभिन्न जातियां, कापालिकों के विद्यासाधन, समुद्र - यात्राएं श्रादि का वर्णन आया है ।
कहारयण कोस
देवभद्रसूरि या गुणचन्द्र की तीसरी रचना कथारत्नकोश है । वि० सं० १९५८ में भन्छ ( भड़ौच ) नगर के मुनिसुव्रत चैत्यालय में इस ग्रंथ की रचना की गयी हैं । प्रशस्ति में बताया है
वसुवाण रुद्दसंखे वच्चते विक्कमायो कालम्मि । लिहित्र पढमम्मि य पोत्थयम्मि गणि श्रमलचंदेण ॥
-- कथा० २० प्रशस्ति गा० ६
इस कथा रत्नकोश में कुल ५० कथाएं । इस ग्रन्थ में दो अधिकार हैं--धर्माधिकारि सामान्य गुणवर्णनाधिकार और विशेष गुणवर्णनाधिकार | प्रथम अधिकार में ३३ कथाएं और द्वितीय में १७ कथाएं हैं। सम्यक्त्व के महत्त्व के लिए नरवर्मनृप की कथा, शंकातिचार दोष के परिमार्जन के लिए मदनदत्त वणिक की कथा, कांक्षातिचार परिमार्जन के लिए नागदत्तकथा, विचिकित्सातिचार के लिए गंगावसुमती को कथा, मूढदृष्टित्वातिचार के लिए शंखकथानक, उपबृंहातिचार के लिए रुद्राचार्यकथा, स्थिरीकरणातिचार के लिए
१- पार्श्वनाथ चरित प्रस्तावना पृ० ४
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