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(३) सामान्य+विशेष समुदायोऽत्र द्रव्यम् ।
विभू० सु० ४४ - भाष्य के इन उक्त सभी पाठों का मतलव यही है कि पदार्थ सामान्य विशेष उभयरूप है। ___ मीमांसक धुरीण पार्थसार मिश्र का भी कथन है कि संसार की भी वस्तुएं सामान्य विशेष उभयस्वरूप को धारण किये हुये हैं जब कि, गो शब्द को सजातीय सकल गोव्यक्तियों में अनुवृत्ति-एकाकार प्रतीति-और विजातीय अश्वादिकों से व्यावृत्तिपृथक्त्व-रूप का भान कराते हुए प्रत्यक्ष देखा जाता है तब वस्तु मात्र को अन्वय व्यतिरेक अथवा सामान्य विशेष रूप से सिद्ध करने वाले इस प्रत्यक्ष प्रमाण से बढ़कर और कौनसा बलवान् प्रमाण है अर्थात् कोई नहीं इसलिये विश्व के समस्त पदार्थ सामान्य विशेष रूप हैं । तथाहि
"सर्वेष्वपि वस्तुषु इयमपि गौरियमपिगाः अयमपिवृक्षोऽयमपि, इति व्यावृत्ता नुवृत्ताकारं प्रत्यक्षं देशकालावस्थान्तरेष्वविपर्यस्त मुदीयमानं
+ ये * चाहुः सामान्यविशेषाश्रयो द्रव्यमिति तान्प्रत्याह सामान्य इति सामान्य विशेष समुदायोऽनदर्शने द्रव्यम् ।
[वाचस्पति मि.]
• ये वैशेषिकादयः-[टिप्पणी]
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