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( ३५ ) अर्थात्-धर्मि में धर्म परिणाम, धर्मों में लक्षण परिणाम और लक्षणों में अवस्था परिणाम, इस प्रकार धर्म लक्षण और अवस्था परिणाम से शून्य गुण समुदाय कभी नहीं रहता। यह तीन प्रकार का परिणाम, धर्म धर्मी का भेद मान कर ही कहा गया है। वास्तव में-धर्म धर्मी के अभेद को आश्रयण करने पर'--तो केवल एक ही परिणाम है। अर्थात् उक्त, धर्म लक्षण और अवस्था रूप तीनों परिणाम केवल धर्मी के
(१) एषत्रिविधः परिणामो धर्म धर्मिभेदात-धर्म धर्मिणो भेद * मालक्ष्य तत्र भूतानां पृथिव्यादीनांधर्मिणां गवादिर्घटादिर्वा धर्मपरिणामः । धर्माणां चा तीतानागत वर्तमानरूपता लक्षण परिणामः । घटादीनामपि नव पुरातनता अवस्था परिणामः । इति वाचस्पति मिश्रः ।
इसका भावार्थ-पृथिवी प्रादि धर्मियों का गो आदि रूप में या घट प्रादि रूप में परिणत होना धर्म परिणाम कहा जाता है। और गो घटादि धर्मों का भूत भविष्यत और वर्तमान रूप से स्थित होना लक्षण परिणाम है। तथा वर्तमान प्रादि काल से युक्त गौ आदि का बाल, युवा और वृद्ध तथा घटादि का नया और पुराना मादि होना अवस्था परिणाम है । इत्यादि यह तीन प्रकार का परिणाम धर्म धर्मी के भेद को प्राश्रयणा करके कहा है।
(२) अभेद माश्रित्याह-परमार्थतस्तु इति ।....."पारमार्थिकत्व मस्यज्ञाप्यते नत्त्वन्यस्यपरिणाम मस्य निषिद्धयते । वाच० मि० ॥ ____नतुपरिणामानां त्रित्वं निषिद्यतेऽपितुत्रयोपि परिणामाधर्मिणएवेत्य भेद माश्रित्य ज्ञाप्यते इत्यर्थः (इति टिप्पणीकारो वालरामः) ।
*-भेद मालक्ष्य-भेदमाश्रित्योक्त इत्यर्थ [टिप्पणी]
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