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वस्तु का स्वरूप केवल एक ही नहीं किन्तु अनेक भी है, तथा केवल द्रव्य अथवा पर्याय ही नहीं किन्तु द्रव्य पर्याय उभय रूप है और · केवल धर्म या धर्मी रूप ही नहीं किंतु उभय रूप है एवं मात्र सामान्य अथवा विशेष रूप ही नहीं किंतु सामान्य विशेष उभय रूप ही वस्तु का स्वरूप जैन दर्शन को अभिमत है । जैन दर्शन का अनेकान्तवाद इसी प्रकार का है पाठकगण जैन दर्शन के इस उक्तसिद्धान्त की तुलना अन्यान्य दार्शनिक विद्वानों के विचारों से करें और हम भी अपने पर्यालोचित विचारों को इसी उद्देश्य से सभ्य जनता के समक्ष रखने का यथा शक्ति प्रयत्न करते हैं ।
[ दर्शन शास्त्रों में अनेकान्तवाद दर्शन]
__ जैन दर्शन अनेकान्तवाद प्रधान दर्शन है यह बात ऊपर कही जा चुकी है तथा यह भी पीछे बतलाया है कि जैन दर्शन के अनेकान्तवाद को जैनेतर दार्शनिक विद्वानों ने भी तात्विक विचार में कई स्थलों पर उसे किसी न किसी रूप में स्वीकार किया है इस बात के समर्थनार्थ हम यहाँ पर कतिपय दार्शनिक विद्वानों के लेखों को उद्धृत करते हैं।
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