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परिणाम अथवा पर्याय विशेष हैं इन प्रत्यक्ष सिद्ध पर्यायों का अपलाप कदापि नहीं हो सकता एवं सर्वथा अनित्य भी वस्तु को नहीं कह सकते क्योंकि कटक कुंडलादि में सुवर्ण और घट शराब आदि में मृत्तिका रूप द्रव्य का अनुगत रूप से प्रत्यक्ष भान हो रहा है। अतः वस्तु एकान्ततया नित्य अथवा अनित्य नहीं किंतु कथंचित् नित्यानित्य उभय स्वरूप है। द्रव्य की अपेक्षा वह नित्य और पर्याय की अपेक्षा से अनित्य है । इस बात का उल्लेख
जैन ग्रन्थों में अनेक स्थानों पर स्पष्ट रूप से किया है । * इसलिये पर्याय की अपेक्षा से तो वस्तु प्रतिक्षण उत्पत्ति और
*-(१) रयणप्पहा सिय सासया सिय प्रसासया।
दब्बट्टयाए सिय सासया पजवट्टयाए सिय प्रसासया॥ छाया-रत्नप्रभा स्थाच्छाश्वती स्यादशाश्वती ।
द्रव्यार्थतया स्याच्छाश्वती पर्यायार्थतया स्यादशाश्वती ॥ (२) उप्पज्जति चयंति प्रा भावा निश्रमेण पजवनयस्स ।
व्यट्ठियस्तसव्वं सया अणुप्पन मविणटुं । छाया-उत्पद्यन्ते च्यवन्ते च भावा नियमन पर्यवनयस्य । द्रव्यास्तिकस्यसर्व सदानुत्पन्न मविनष्ठम् ॥
(सम्मतितर्क गाथा ११) (३) द्रव्यात्मना स्थितिरेव सर्वस्य वस्तुनः पर्यायात्मनातुसर्व वस्तुत्पश्यते विपद्यते चास्खलित पर्यायानुभव सद्भावात् ।
(हरिभद सूरिकृतषड्दर्शन समुच्चय की टीका पृ० ५७)
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