________________
( २३ )
विनाश की परंपरा को लिये हुये है तथा द्रव्य को अपेक्षा वह सदा अविनाशी एवं ध्रुव है यह सुनिश्चित है ।
[ द्रव्य और पयार्य का भेदाभेद ]
यद्यपि द्रव्य नित्य और पर्याय विनाशी हैं इसी प्रकार द्रव्य धर्मी और पर्याय उसके धर्म, द्रव्य कारण पर्याय कार्य, द्रव्यगुणी पर्यायगुण, द्रव्य सामान्य पर्याय विशेष एवं द्रव्य एक और पर्याय अनेक हैं तथापि द्रव्य और पर्याय आपस में एक दूसरे से सर्वथा पृथक नहीं हैं । द्रव्य को छोड़ कर पर्याय और पर्यायों को छोड़कर द्रव्य कहीं नहीं रहता अथवा यूं कहिये कि पर्याय; द्रव्य से अलहदा नहीं हैं और द्रव्य पर्यायों से पृथक नहीं हो सकता । अतः ये दोनों ही सापेक्षतया भिन्न अथच अभिन्न हैं । महामति सिद्धसेन दिवाकर ने इसी अभिप्राय से सम्मति तर्क में लिखा है-
"दब्बं पज्जब विउयं दव्बविउत्ता पजवाणत्थि । "उपाय गंगा हंदि दविध लक्खणं एयं ॥१२॥
( १ ) - छाया - द्रव्य पर्याय वियुतं द्रव्यवियुक्ताश्च पर्यवानसन्ति । उत्पादस्थिति भंगा हंत द्रव्यलक्षण मेतव ॥ १२॥
स्याद्वाद मंजरी आदि अनेक जैन ग्रंथों में इसी आशय का एक और संस्कृत श्लोक उद्धृत किया हुआ देखा जाता है वह इस प्रकार है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org