________________
स्वीकार किया है ? पदार्थ को उत्पत्ति विनाश और स्थिति शील सिद्ध करने में भट्ट महोदय ने भी ऊपर दी गई युक्ति का ही . अवलम्बन किया है । तथा हि"वर्द्धमानकभंगेच, रुचकः क्रियते यदा " "तदापूर्थिनः शोकः प्रीतिश्चाय्युत्तरार्थिनः ॥२१॥ "हेमार्थिनस्तुमाध्यस्थ्यं, तस्मादस्तु त्रयात्मकम् ॥" "नोत्पाद स्थिति भंगाना मभावेस्यान्मतित्रयम् ॥२२॥ "न नाशेन विनाशोको, नोत्पादेन विनासुखम् ।" "स्थित्याविना नमाध्यस्थ्यं तेनसामान्यनित्यता॥२३॥ ___ इन श्लोकों का संक्षेप से अर्थ यह है कि-सुवर्ण के प्याले को तोड़ कर जब उसका रुचक बनाया जावे तब जिसको प्याले की जरूरत थी उसको शोक और जिसे रुचक की आवश्य कत्ताथी उसे हर्ष तथा जिसे सुवर्ण मात्र ही चाहिये था उसे हर्ष शोक कुछ भी नहीं होता किन्तु वह मध्यस्थ ही रहता है । इससे प्रतीत हुआ कि वस्तु उत्पत्ति स्थिति और विनाश रूप है। क्योंकि उत्पत्ति स्थिति और विनाश ये तीनों धर्म यदि वस्तु के न माने जांय तो शोक प्रमोद और मध्यस्थ्य इनकी कभी उपपत्ति नहीं हो सकती।
१ टीका-त्रयात्मकम्-उत्पत्ति स्थिति विनाश धर्मात्मकमित्यर्थः । * मीमांसा श्लोक वार्तिक पृ० ६१८ । "
तारा यंत्रालय बनारस सिटी।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org