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वह शोका भाव पैदा हुआ तीनों ही मना
व्यापार को देख कर उन तीनों ही मनुष्यों के मन में भिन्न २ प्रकार का भाव पैदा हुआ। जिसको सुवर्ण-घट की जरूरत थी वह शोक करने लगा, जिसको मुकुट की आवश्यकता थी वह मन में आनन्द मनाने लगा और जिसे केवल सुवर्ण ही अभि लषित था उसे शोक वा हर्ष कुछ भी नहीं हुआ। किन्तु वह अपने मध्यस्थ भाव में ही रहा । अब यहां पर प्रश्न होता है कि इस प्रकार का भाव भेद क्यों ? यदि वस्तु, उत्पाद व्यय और ध्रौव्यात्मक न हो तो इस प्रकार के भाव भेद की उपपत्ति कभी नहीं हो सकती । घट प्राप्ति की इच्छा से आने वाले मनुष्य को घट के विनाश से शोक और मुकुटार्थी पुरुष को मुकुटोत्पत्ति से हर्ष एवं सुवर्ण मात्र की अभिलाषा रखने वाले को न हर्ष न शोक कुछ भी नहीं होता क्योंकि सुवर्ण रूप द्रव्य तो मुकुट की उत्पत्ति और घट के विनाश, इन दोनों ही दशाओं में बराबर विद्यमान है। यदि घट विनाश काल में मुकुट की उत्पत्ति न मानी जाय तो घटार्थी पुरुष को शोक और मुकुटार्थी को हर्ष का होना दुर्घट सा हो जाता है । एवं घट मुकुटादि सुवर्णपर्यायों के अतिरिक्त, सुवर्ण रूप कोई द्रव्य ही यदि न माना जाय तो सुवर्णार्थी पुरुष के मध्यस्थभाव की उपपत्ति कभी नहीं हो सकती । परन्तु उक्त व्यापार में शोक, प्रमोद और माध्यस्थ्य ये तीनों भाव देखे अवश्य जाते हैं । इनका आकस्मिक अथवा निनिमित्तक होना तो किसी प्रकार भी युक्ति युक्त नहीं, इसलिये वस्तु के स्वरूप को उत्त्पाद व्यय और ध्रौव्यात्मक मानना ही युक्ति संगत और प्रमाणानुरूप है।
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