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________________ यहां पर उत्पाद व्यय को पर्याय और ध्रौव्य को द्रव्य के नाम से अभिहित करके वस्तु-पदार्थ-को द्रव्य' पर्यायात्मक भी कहा है। द्रव्य स्वरूप नित्य और पर्याय स्वरूप अनित्य है। द्रव्य नित्यस्थायी और पर्याय बदलते रहते हैं। [महर्षि पतञ्जलि] जैन दर्शन के उक्त सिद्धान्त का महर्षि पतञ्जलि ने भी महाभाष्य के पशपशाह्निक में निम्नलिखित शब्दों में बड़ी सुन्दरता से समर्थन किया है अर्थात् उन्होंने भी उक्त सिद्धान्त का स्पष्टवया निम्नलिखित शब्दों में प्रतिपादन किया है । तथा हि-... द्रव्यं नित्य माकृति रनित्या, सुवर्ण कया चिदाकृत्यायुक्तं पिण्डो भवति पिण्डाकृतिमुपमृद्य रुचकाः क्रियन्ते, रुचकाकृतिमुपमृद्यकटकाः क्रियन्ते कटकाकृतिमुपमृद्य स्वास्तिकाः क्रियन्ते पुनरावृत्तः सुवर्णपिण्डः पुनरपरयाऽऽकृत्यायुक्तः जैन भागमों में भी इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख है यथा उप्पजेइवा विगमेइवा धुवेइवावस्तु तत्वं च उत्पाद व्यय ध्रौव्यात्मकम् । (स्याद्वाद मंजरी पृ०१५८) (१) वस्तुनः स्वरूपं द्रव्यपर्यायात्मकत्व मिति प्रमः ( स्या० वा० मं० पृ०१३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002141
Book TitleDarshan aur Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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