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करायेंगे । दर्शन शास्त्रों के परिशीलन से हमारा इस बात पर पूर्ण विश्वास हो गया है कि अनेकान्तवाद का सिद्धांत, अनुभव सिद्ध स्वाभाविक तथा परिपूर्ण सिद्धांत है । इसकी स्वीकृति का सौभाग्य किसी न किसी रूप में सभी दार्शनिक विद्वानों को प्राप्त हुआ है। अनेकान्तवाद के सिद्धांत की सर्वथा अवहेलना करके कोई भी तात्त्विक सिद्धांत परिपूर्णता का अनुभव नहीं कर सकता ऐसा हमारा विश्वास है।
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[ पदार्थों का व्यापक स्वरूप ]
विश्व के पदार्थों का भली भांति अवलोकन करने से ज्ञात होता है कि वे सब उत्पत्ति, विनाश और स्थिति से युक्त हैं। प्रत्येक पदार्थ में उत्पाद व्यय और ध्रौव्य का प्रत्यक्ष अनुभव होता है । जहां हम वस्तु में उत्पत्ति और विनाश का अनुभव करते हैं वहां पर उसकी स्थिरता का भी अविकल रूप से भान होता है। उदाहरण के लिये एक सुवर्ण पिण्ड को ही लीजिये ? प्रथम सुवर्ण पिण्ड को गला कर उसका कटक (कड़ा) बना लिया गया और कटक का ध्वंस करके उसका मुकुट तैयार किया गया यहां पर सुवर्ण पिण्ड के विनाश से कटक की उत्पत्ति और कटक के ध्वंस से मुकुट का उत्पन्न होना देखा जाता है परन्तु इस उत्पत्ति विनाश के सिलसिले में मूल वस्तु सुवर्ण की सत्ता बराबर मौजूद है। पिण्ड दशा के विनाश और कटक की उत्पत्ति दशा में भी सुवर्ण की सत्ता मौजूद है एवं कड़ेके विनाश और मुकुट के उत्पाद काल में भी सुवर्ण बराबर विद्यमान है । इससे यह सिद्ध
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