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मध्यस्थवादमालायास्तृतीयं पुष्पम् । दर्शन और अनेकान्तवाद ।
चराचरस्वरूपाय विरूपायात्मने नमः। अजाय जायमानाय, मायातीताय मायिने ॥२॥
आरम्भिक निवेदन
रतीय आस्तिकदर्शनों में अनेकान्तवाद को मुख्य स्थान देते हुए जिस दर्शन में अध्यात्म तत्वों का सुव्यवस्थित विचार किया गया है, वह दर्शन जैन दर्शनके नाम से प्रसिद्ध है। आज हम अपने मध्यस्थ पाठकों को जैन दर्शन के उसी अनेकान्तवाद का कुछ परिचय दिलाने का प्रयत्न
करते हैं। हमारे ख्याल में भारतीय प्राचीन तथा अर्वाचीन, कतिपय दार्शनिक विद्वानों ने जैन दर्शन के अनेकान्तवाद का जो स्वरूप सभ्यसंसार के सामने रखा है वह उसका यथार्थ स्वरूप नहीं । उन्होंने अनेकान्तवाद का स्वरूप
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