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मानन्दगिरि-- इन्होंने ब्रह्मसूत्र के शांकर भाष्य पर न्यायनिर्णय नाम की एक सुन्दर टीका लिखी है। इसके सिवाय भगवद्गीता पर इन की आनन्दगिरि नाम की टीका प्रसिद्ध है। इनका समय विक्रम की चौदहवीं सदी का उत्तरार्द्ध है। और ब्रह्मसूत्र शांकर भाष्य पर रत्नप्रभा नाम की टीका के कर्ता गोविन्दानन्द स्वामी भी इन्हीं के समकालीन प्रतीत होते हैं।
धर्मराज दीक्षितवेदान्त परिभाषा के कर्ता धर्मराज दीक्षित का समय १५५० ई० है इनकी यह पुस्तक वेदान्त न्याय में प्रवेश करने के लिये एक सुन्दर द्वार है।
शङ्कर मिश्रइनका समय ई० सन् १६०० के लगभग है। वैशेषिक सूत्रों पर इनकी उपस्कार नाम की स्वतन्त्र व्याख्या बड़ी उत्तम और पदार्थ विवेचन के लिये बड़ी उपयोगी है।
नागार्जुन--- माध्यमिक मत ( शून्यवाद ) के प्रधान आचार्य बौद्ध विद्वान नागार्जुन का समय ईशा की दूसरी शताब्दी है । बौद्ध सम्प्रदाय में यह बड़े ही समर्थ थे और विख्यात विद्वान् हुए हैं।
इनके सिवाय प्रस्तुत निबन्ध में और जिन ग्रन्थकारों का उल्लेख आया है वे प्रायः विक्रम की उन्नीसवीं तथा वीसवीं शताब्दी में हुए हैं।
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