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[ ३० ] वैदिक धर्म की निर्वाणासन्न ज्योति को प्रचण्ड करने वाले ये ही महापुरुष हुए हैं। प्रस्थानत्रयी-उपनिषद-गीता और ब्रह्मसूत्र-पर इनके जो भाष्य हैं वे इनकी कीर्ति के सुद स्तम्भ हैं। भारतवर्ष कीचारों दिशाओं में इनके द्वारा स्थापन किये गये मठ, इनकी दिग्विजय का आजभी प्रमाण दे रहे हैं । इसमें सन्देह नहीं कि. शंकर स्वामी के द्वारा वैदिक धर्म को आशातीत प्रगति मिली।
सम्प्रदायानुसार इनका समय कुछ भी हो परन्तु वर्तमान समय के इतिहासज्ञ विद्वानों ने इनका समय ईसा की आठवीं नवमी (७८८-८२०) शताब्दी निश्चित किया है। विक्रम की आठवीं सदी से लेकर सत्रहवीं सदी तक इनके विचारों को और भी सुदृढ़ बनाने के लिये इनके अनुगामी भारतीय विद्वानों ने बड़े बड़े प्रौढ़ और उच्च कोटि के दार्शनिक अन्थों का निर्माण किया और इनके मत. का समर्थन करने वाले दार्शनिक साहित्य में आशातीत वृद्धि हुई।
वाचस्पति मिश्रदार्शनिक विद्वानों में वाचस्पति मिश्र का स्थान बहुत ऊंचा है । प्रत्येक शास्त्र में इनकी अव्याहत गति थी । इनके समान दर्शन शास्त्रों के मार्मिक विद्वान् बहुत ही अल्प हुए हैं। इनकी लेखन पद्धति बड़ो ही प्रसन्न और गम्भीर है। इनके रचे हुए
* वे ग्रन्थ और ग्रन्थनिर्माताओं के नाम आदि के विषय में देखो हिं० त० नो० इतिहास पृ० २१६-२१८ तक।
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