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[ ३१ ] ग्रन्थ, गुणगरिमा में एक दूसरे से स्पर्धा कर रहे हैं। इनकी सार्वदेशिक प्रतिभा का प्रकाश, सांख्य योग, वेदान्त न्याय और मीमांसा आदि दर्शनों पर इनके लिखे हुए ग्रन्थों में से पूर्णिमा के चन्द्रमा के समान प्रकाशित हो रहा है। इन्होंने भामति (शांकर भाष्य व्याख्या) सांख्य तत्व कौमुदो (सांख्य कारिका व्याख्या) तत्व विशारदी (योग भाष्य व्याख्या) तात्पर्य टीका (उद्योतकार के न्याय वार्तिक पर) न्याय सूची (स्वतो निबंध) न्यायकणिका ( मंडन मिश्रकृत विधि विवेक की टोका) और कुमारिल भट्ट के विचारों पर तत्वविन्दु आदि अनेक ग्रन्थ रत्नों द्वारा भारतीय दार्शनिक साहित्य की सौभाग्य श्री को अलंकृत किया है । ये नृग राजा के समय में हुए हैं और जाति के ये मैथिल ब्राह्मण थे। इनका समय विक्रम की नवमी शताब्दी कहा व माना जाता है।
पार्थसार मिश्र--
पारथसार मिश्र, मीमांसा दर्शन के धुरीणतम विद्वान् थे। इनका रचा हुआ शास्त्र दीपिका नाम का ग्रंथ इनके प्रतिभाउत्कर्ष का नमूना है । इसके सिवाय इन्होंने न्याय रत्नाकर (श्लोक वार्तिक व्याख्या) तंत्र रत्न और न्याय माला आदि मीमांसा दर्शन से सम्बन्ध रखने वाले और भी ग्रंथ लिखे हैं। ये महामति कुमारिल भट्ट के अनुयायी थे । इनका समय विक्रम की दसवीं और बारहवीं सदी के दरम्यान का निश्चित होता है।
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