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[ २९ ] व्यास से भिन्न हैं तब तो इनका समय हमारे ख्याल मेंअनिश्चित एवं संदिग्ध सा ही है । तथा जिन लोगों ने योग सूत्र कार पतंजलि का समय ईसा की दूसरी शताब्दी माना है उनके मत से तो ये ईसाकी तीसरी शताब्दी से पहले के नहीं होने चाहिये परन्तु इनके विषय में वास्तविक तथ्य अभी तक स्पुट नहीं हुआ।
कुमारिल भट्ट
मीमांसक धुरीण महामति कुमारिल भट्ट को दिगन्त व्यापिनी कीर्तिका आभास दार्शनिक जगत् में आज भी मूर्तिमान होकर दिखाई दे रहा है । वैदिक धर्म के अभ्युदयार्थ इन्होंने अपने जीवन काल में जिस कदर कष्ट उठाये हैं उनसे इनकी धर्म विषयिणी अनन्य भक्ति का पूरा सबूत मिल रहा है । इनके समय में वैदिक धर्म को फिर से जो प्रगति मिली है तदर्थ वह आप का चिरकाल तक कृतज्ञ रहेगा। इतिहास वेत्ताओं ने इनका समय : ईसा की आठवीं शताब्दी-[७०० से ७८० तक ] सुनिश्चित किया है। मीमांसा श्लोक वार्तिक और तंत्र वार्तिक आदि अन्य इनके प्रकाण्डपांडित्य के ज्वलन्त आदर्श हैं।
स्वामि शंकराचार्यअद्वैत मत के प्रधान आचार्य स्वामी शंकराचार्य के विषय में इतना ही कह देना पर्याप्त होगा कि वे तत्कालीन दार्शनिक युग में एक ही थे । इनके समान प्रभाव और विद्या वैभव रखने वाली दार्शनिक व्यक्ति बहुत कम हुई हैं। कुमारिल भट्ट के बाद
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