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नाम से प्रसिद्ध हैं। दुर्भाग्यवश वे सब के सब इस समय नहीं मिलते उनमें से जितने ग्रन्थ आज उपलब्ध होते हैं वे जैन साहित्य भण्डार के एक अमूल्य रत्न हैं। इनके न्याय खण्डन खण्डखाद्य, और स्याद्वाद कल्पलता आदि ग्रंथों के देखने का जिस विद्वान् को सौभाग्य प्राप्त हुआ हो वह निस्संदेह हमारे इस कथन का पूर्णतया समर्थन करेगा । इनका समय विक्रम की सत्रहवीं अठारहवीं सदी सुनिश्चित है। गुर्जर भाषा के वीरम्तव को इन्होंने वि० सं० १७३३ की विजय दशमी को समाप्त किया। ये उपाध्याय नय विजय के शिष्य थे। के ऐसे प्रकाण्ड विद्वान् के लिये जैन जनता जितना गर्व करे उतना कम है। वैदिक विद्वान्
कणाद ऋषि-- वैशेषिक सूत्रों के कर्त्ता कणाद ऋषि कब हुए इसका पूर्ण निश्चय अभी तक नहीं हुआ । कितने ऐतिहासिकों का अनुमान है कि वैशेषिक दर्शन की रचना गौतम के न्याय सूत्रों से प्रथम हुई है। (१) और अन्य इसे न्याय दर्शन से बाद का कहते हैं और उसकी न्यूनता का पूरक मानते हैं । (२) परन्तु वास्तविक तथ्य
* देखो शास्त्र वार्ता समुच्चय की संस्कृत प्रस्तावना | (१) देखो हिन्द तत्वज्ञान नो इतिहास पृ० २२३ पूर्वाद्ध ।
(२) देखो रमेशदत्त लिखित प्राचीन भारतवर्ष की सभ्यता का इतिहास भाषानुवाद-"कणाद का तात्विक सिद्धान्तवाद गौतम के न्याय शास्त्र की पूर्ति है" । (पृ० १०६ भा० २).
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