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[ २४ ] सहायता से शक सं० १२१४ में स्याद्वाद मंजरी नामक व्याख्या ग्रन्थ की रचना की थी।
गुणरत्न सूरि
ये विद्वान् विक्रम की पंद्रहवीं शताब्दी में हुए हैं। इनके गुरु का नाम देवसुन्दर सूरि था। विक्रम सं० १४६६ में इन्होंने क्रिया रत्न समुच्चय नाम के अन्य की रचना की है और तर्क रहस्य दीपिका (षड् दर्शन समुच्चय टीका ) जैसा दार्शनिक ग्रन्थ भी इनका ही रचा हुआ है।
उ० विनय विजय जी
ये महात्मा विक्रम की सत्रहवीं अठारहवीं सदीमें हुए हैं। इनके गुरु का नाम उ० कीर्ति विजय था । इनके ग्रन्थों से इनके समय का परिचय बराबर मिलता है। ये विद्वान् होने के अलावा बड़े शान्त और आचार सम्पन्न थे । अपने जीवन काल में इन्होंने संस्कृत, प्राकृत और गुजराती भाषामें कई एक उत्तमोत्तम ग्रन्थोंकी
.............................. * नागेन्दगच्छगोविन्दवक्षोऽलंकारकौस्तुभाः ।
ते विश्ववंद्या नन्द्यासुरुदयप्रभसूरयः।। ६ ।। श्रीमल्लिषेणप्तरिभिरकारि तत्सदगगनदिनमणिभिः । वृत्तिरिय मनुरवि (१२१४) मित शाकाब्दे दीपमहसिशनौ ॥७॥ श्रीजिनप्रभसूरीणां साहाय्योद्भिन्नसौरभा । श्रुता बुतं सतुसता वृत्तिः स्याद्वाद मंजरी ॥८॥
( स्याद्वाद मं० की प्रशस्ति)
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