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सूरि के पास इन्होंने दीक्षा व्रत ग्रहण किया और १९६२ में ये आचार्य पद पर नियुक्त हुए। तथा १२२९ में इनका स्वर्गवास हुआ + ये महापुरुष उस समय के प्रवल प्रतापी महाराजा कुमारपाल के गुरु थे। इनकी अगाध विद्या बुद्धि का अंदाजा लगाना कठिन ही नहीं वल्कि असंभव है । आपकी अलौकिक प्रतिभा से उत्पन्न होने वाली महान् ग्रन्थराशि आज संसार के सारे विद्वानों को विस्मय में डाल रही है । साहित्य सम्बन्धी ऐसा कोई भी विषय नहीं जिस पर कि आपकी चमत्कार पूर्ण लेखिनी न उठी हो । न्याय व्याकरण काव्य कोष अलंकार छंद नीति और अध्यात्म आदि सभी विषयों पर आपने संस्कृत और प्राकृत भाषा में एक व अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे हैं । कहते हैं कि आपने अपने प्रशंसा जीवन काल में साढ़े तीन करोड़ श्लोक प्रमाण ग्रंथों की रचना की है । परंतु दुर्भाग्यवश से आज वे सब उपलब्ध नहीं होते मगर जितने आज मिलते हैं उनकी संख्या भी कुछ कम नहीं । इसमें शक नहीं कि श्री हेमचंद्र सूरि ने भारतीय संस्कृत प्राकृत साहित्य की जो अनुपम सेवा की है उसके लिए समस्त भारतीय जनता उनकी चिरकाल तक ऋणी रहेगी ।
मल्लिषेण सूरि
ये आचार्य विक्रम की चौदवीं शताब्दी में हुए हैं। ये नागेन्द्र गच्छीय उदय प्रभसूरि के शिष्य थे। इन्होंने जिनप्रभ सूरि को
+ देखो कुमारपाल चरित्र की भाषा प्रस्तावना |
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