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[२०] अमृतचन्द्र सूरि
यह विद्वान् जैन धर्म की दिगम्बर शाखा में हुए हैं। इन्होंने कुन्दकुन्दाचार्य कृत समय सार, पर आत्म ख्याति नाम की टीका लिखी है और प्रवचनसार टीका, पंचारित काय टीका तत्वार्थसार पुरुषार्थ, सिद्ध्युपाय, पंचाध्यायी और तत्व दीपिका आदि ग्रन्थ भी इन्हीं के पवित्र मस्तिष्क की उपज हैं। दिगम्बर पट्टावली में लिखा है कि ये विक्रम संवत् १९६२ में विद्यमान थे अतः इनका समय विक्रम की दशवीं शताब्दी, सुनिश्चित है ।
विद्यानन्द स्वामी
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दिगम्बर जैन सम्प्रदाय में आचार्य विद्यानन्दी ( विद्यानन्द स्वामी) दार्शनिक विषय के एक समर्थ विद्वान् हो गये हैं । जैन धर्म में दीक्षित होने के पूर्व यह दर्शन शास्त्रों के धुरीणतम विद्वान प्रतिभाशाली वैदिक धर्मालम्बी ब्राह्मण थे। उनकी जन्मभूमि मध्यदेश में थी । इनके रचे हुए अष्ट सहस्री, तत्वार्थश्लोक वार्तिकालङ्कार युक्तयनुशासन, और आप्त परीक्षादि ग्रन्थ इनकी चमत्कारिणी लोकोत्तर प्रतिभा का परिचय देने में पूर्णतया पर्याप्त हैं । ये
असाधारण नैयायिक और उच्च कोटि के दार्शनिक और गद्य पद्य के अनुपम लेखक थे । इनके संबंध में श्रवणवेल गोला में प्राप्त हुए शिला लेखों से प्रतीत होता है कि इन्होंने कई एक राज सभाओं में जाकर विपक्षियों पर विजय प्राप्त की। अतः इनके
* देखो जैन प्रन्धाव ले जैन न्याय पृष्ट ६०
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