________________
[ २९ ]
द्वारा जैन धर्म में जो प्रगति हुई उसके लिये वह इनका चिरकाल तक ऋणी रहेगा | इतिहास गवेषकों ने इस तार्किक शिरोमणि का समय विक्रम को नवमीं शताब्दी सुनिश्चित किया है ।
सिद्धर्षि -
इनके गुरु का नाम गर्गर्षि था । न्यायावतार ( सिद्धसेन दिवाकर कृत) पर एक सुन्दर विवरण लिखने के अतिरिक्त उपमिति भव प्रपंच नाम का अध्यात्म विषय का बोध पूर्ण कथा ग्रन्थ भी इन्हीं का लिखा हुआ माना जाता है। ये महात्मा वि० सं० ९६२ में विद्यमान थे ऐसा ऐतिहासिक विद्वानों का मंतव्य है : इनकी विवृति पर मलधार गच्छीय हेमचंद्राचार्य के शिष्य राजशेखर सूरि ने टिप्पन लिखा है । ये वि० सं० १४०५ में विद्यमान थे ।
चन्द्रप्रभ सूरि
Bring a
इनका समय विक्रम की वारहवीं शताब्दी माना जाता है । प्रमेय रत्न कोष के अलावा दर्शन शुद्धि नामका भी एक प्रकरण ग्रन्थ इन्हीं का बनाया हुआ कहा जाता है और विक्रम संवत् ११५९ में इन्होंने पूर्णिमा गच्छ की स्थापना की थी । +
1
देखो अष्ट सहस्री, और श्लोक वार्तिकालंकार की प्रस्तावना । ये
Jain Education International
ग्रन्थ गान्धी नाथारंग जैन ग्रन्थ माला में प्रकाशित हुए हैं ।
÷ देखो न्यायावतार की प्रस्तावना ।
+ देखो जैन ग्रन्थावलि पू० १२८ ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org