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हरिभद्र सूरिश्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय में इस नाम के कई आचार्य हो गये हैं। परंतु प्रस्तुत निबंध में जिनके ग्रन्थों का हमने उल्लेख किया है वे हरिभद्र सूरि सब से पुराने हैं। जोकि याकिनीमहत्तरा सूनु के नाम से प्रसिद्ध और १४४४ ग्रन्थों के प्रणेता कहे व माने जाते हैं । जैन परम्परा के अनुसार इनका स्वर्गवास विक्रम सं० ५८५ में हुआ। अतः इनका समय विक्रम की छठी शताब्दी है। परंतु गुजरात पुरातत्व के आचार्य मुनि श्री जिन विजय जी ने हरिभद्र सूरि के समय निर्णय पर जो मवेषणा पूर्वक निबंध लिखा है उसमें इनका समय विक्रम की आठवीं नववीं शताब्दी निश्चित किया है। उनका यह निश्चय आजा कल के ऐतिहासिक विद्वानों में माननीय भी हो चुका है।
हरिभद्र सूरि जाति के. ब्राह्मण आचार सम्पन्न प्रतिभाशाली एक अनुपम विद्वान् हुए हैं। इनकी लोकोत्तर प्रतिभा ने अनेकान्त जय पताका, शास्त्रवार्ता समुच्चय, षड् दर्शन समुञ्चय, योग बिंदु योग दृष्टि समुच्चय, और न्याय प्रवेशक सूत्रादि विविध विषय के अनेक ग्रन्थ रत्नों को उत्पन्न करके न केवल जैन साहिल्यः को ही गौरवान्वित बनाया किंतु भारतीय संस्कृत प्राकृत साहित्य रत्न के भाण्डागार को भी विशेष समृद्धिशाली बनाया। ऐसे अनुपम विद्वान् के लिये, भारतीय जनता जितना अभिमान. कर सके. उतना कम है।
x देखो जैन साहित्य संशोधक भाग. १,, अंक. १. ।।
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