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________________ [ ८ ] निबन्ध के पृष्ठ-१६-२९-३७-३९-५४-५५-५६-५७-५८ ५९-६० आदि ] भारतीय दार्शनिक संसार में सब से अधिक ख्याति प्राप्त करने वाले भट्टमहोदय-कुमारिल भट्ट-ने, मीमांसादर्शन में अनेकान्तवाद-अपेक्षावाद-को जो प्रतिष्ठित स्थान दिया उसका अन्य दार्शनिकों, की अपेक्षा बौद्ध विद्वानों पर कुछ अधिक गहरा प्रभाव पड़ा हुआ दिखाई देता है। उन्होंने अनेकान्तवाद के सम्बन्ध में मीमांसा और जैन दर्शन में कोई भेद नहीं समझा ।* मगर मीमांसा दर्शन के धुरीणतम किसी भी विद्वान ने यह नहीं कहा कि मीमांसा दर्शन में अनेकान्तवाद की भी प्रतिष्ठा है। बल्कि सब आज तक यही समझते रहे कि अनेकान्तवाद मात्र जैनदर्शन का ही सिद्धान्त है। इतर दर्शनों में इसको कथमपि स्थान नहीं । इस में तोशक नहीं कि जैन विद्वानों ने अनेकान्तवाद के समर्थन में जैसे और जितने स्वतंत्र ग्रन्थ लिखे तथा जितने आज उपलब्ध होते हैं, उतने उस विषय पर लिखे हुए मीमांसक विद्वानों के ग्रन्थ आज उपलब्ध नहीं होते । परन्तु तत्वसंग्रह आदि देखने से हमारा यह कथन साफ तौर पर प्रमाणित हो जाता है कि अनेकान्तवाद-अपेक्षावाद की प्रतिष्ठा जैनदर्शन की तरह अन्य दर्शनों में भी है । अतः यह सिद्ध हुआ कि जैनदर्शन ने जिस सिद्धान्त [अपेक्षावाद-अनेकान्तवाद ] को अपने तत्वज्ञान की इमारत का * देखो नालिन्दा बौद्ध विद्यालय के प्रधानाध्यापक आचार्य शांति रक्षित का तत्व संग्रह और धर्मकीर्ति रचित हेतु विंदुतर्व टीका आदि बौद्धग्रंथ । ४ एवमेकांततो भिन्न जातिरेषा निराकृता । जैमिनीयाभ्युपेता तु स्याद्वादे प्रति षेत्स्यते । तत्वसंग्रह पृ० २६२ का ८१२ Jain Education International ial For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002141
Book TitleDarshan aur Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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