________________
(१४९ )
और नानात्व का स्वीकार भी युक्तियुक्त है। जिस प्रकार उदम्बर फल-(गुल्लर का फल ) में रहने वाला उसी में उत्पन्न हुआ मशक ( एक छोटा सा जीव ) उससे भिन्न अथच अभिन्न है उसी प्रकार सत्व और पुरुष भी परस्पर में भिन्न अथच अभिन्न हैं इत्यादि । इससे प्रतीत होता है कि महाभारत के रचयिता को प्रकृति पुरुष का सापेक्ष भेदाभेद ही अभीष्ट है इसी को वह युक्ति युक्त समझता है इनका एकान्त भेद अथवा अभेद उसे ग्राह्य नहीं है । अतः महाभारत भी किसी न किसी अंश में अनेकान्तवाद का समर्थक है।
[ मनुस्मृतिः] मनुस्मृति को, सभी स्मृतियों से प्रधान माना है यह स्मृति अन्य स्मृतियों की अपेक्षा अधिक प्राचीन और महत्वशालिनी समझी जाती है, छान्दोग्य उपनिषद् में लिखा है कि "जो कुछ मनु ने कहा है वह औषधि-दवाई है" (x) उक्त स्मृति में भी एक ऐसा उल्लेख है, कि जिसमें अनेकान्तवाद का अर्थतः स्पष्ट विधान पाया जाता है । तथाहि
अनार्य मार्य कर्माण मार्य चानार्य कर्मिणम् । सम्प्रचार्या बूवीदाता न समौ ना समाविति ।।
(म० १० श्लोक० ७३)
(४) "यन्मनुरवदत्तभेषजं भेषजतायाः"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org