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सर्वेन्द्रियवान होने का जिसमें भास हो परन्तु " जो सर्वेन्द्रिय रहित है । और निर्गुण होकर गुणों का उपभोग करने वाला है। [१३/१४] “ दूर है और समीप भी है,, * [ १३।१५ ] "अविभक्त है और विभक्त भी देख पड़ता है" + [१३१६ ] इस प्रकार परमेश्वर के स्वरूप का सगुण निर्गुण मिश्रित अर्थात् परस्पर विरोधी वर्णन भी किया गया है ।
भगवद्गीता की भांति उपनिषदों में भी अव्यक्त परमात्मा का स्वरूप तीन प्रकार का पाया जाता है- अर्थात् कभी सगुण कभी उभयविधि यानी सगुण निर्गुण मिश्रित और कभी केवल निर्गुण
'भगवद् गीता के समान ही परस्पर विरुद्ध गुणों को एकत्र कर ब्रह्म का वर्णन इस प्रकार किया गया है कि ब्रह्म सत्
* सर्वेन्द्रिय गुणाभासं, सर्वेन्द्रिय विवर्जितम् । 'असक्तं सर्वमृचैव' निर्गुणं गुणभोक्तृच ॥
* वहिरन्तश्च भूताना मचरं चरमेवच । सूक्ष्मत्वाद विज्ञेयं दूरस्थं चांतिके च तत् ।
+ अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिवच स्थितम् ।
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