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[ परिशिष्ठ प्रकरण]
(क) विभाग
[दर्शनों के आधार ग्रन्थों में अनेकान्तवाद]
जिन्तवाद
न ग्रंथों का आधार लेकर दर्शन शास्त्रों की दो
सृष्टि हुई है उनमें भी रूपान्तर से अनेकान्तवाद-अपेक्षावाद-का मूल उपलब्ध होता है । सभी वैदिक दर्शनों के प्रमाण भूत, मूल आधार वेद उपनिषद और गीता हैं
इनके सिवाय महाभारत और पुराण ग्रंथों का भी कहीं कहीं पर प्रमाण रूप से उल्लेख + है। श्रीमद्भगवद्गीता, उपनिषद् और मूल ऋग्वेदादि संहिता ग्रंथों के पर्यालोचन से ज्ञात होता है कि उनमें ब्रह्म के स्वरूप का जिस रूप में निरूपण किया है वह स्वरूप एकान्त नहीं किन्तु अनेकान्त है। . वैदिक साहित्य के सबसे प्राचीन और प्रामाणिक ग्रंथ ऋग्वेद में सृष्टि के मूल कारण ब्रह्म को सत् असत् से भिन्न बतलाते हुए अन्यत्र उसको सत् भी कहा है और असत् भी बतलाया है। उदाहरणार्थ ऋग्वेद के नादसीय सूक्त में
x देखो विज्ञान भिन्नु और श्रीकंठ शिवाचार्य आदि के भाष्यों का लेख जो पीछे दिया जा चुका है ।
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