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है । इस लिये सम्यक् एकान्त और सम्यक् अनेकान्तवाद में किसी को विप्रतिपत्ति नहीं है ।
प्रस्तुत विषय में हमारे जो विचार थे उनको हमने संक्षेप रूप से इस निबन्ध में यथामति दर्शा दिया है और तदुपयोगी संकलित सामग्री को भी उपस्थित कर दिया है । आशा है विवेक शील पाठक हमारे इन विचारों का मध्यस्थ दृष्टि से अवलोकन करते हुए हमारे इस अल्प परिश्रम को सफल करेंगे । शुभम् । विनीत - हंस
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