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प्रकाशक का निवेदन
पढ़े लिखों में से शायद ही जैन समाज में कोई ऐसा हो जो पं० हंसराज जी के नाम से अपरिचित हो । उनकी लिखी हुई 'पुराण और जैनधर्म' नामक किताब थोड़े ही दिन हुए पाठकों की सेवा में उपस्थित की जा चुकी है। आज फिर उन्हीं की लिखी हुई 'दर्शन और अनेकान्तवाद' नामक पुस्तक पाठकों की सेवा में उपस्थित की जाती है ।
इस पुस्तक का विषय है जैन धर्म का प्राणभूत अनेकान्तवाद । इसकी चर्चा प्रस्तुत पुस्तक में पण्डित जी ने बड़े विस्तार से की है । इसकी खास विशेषता यह है कि इसमें जो अनेकान्तवाद दर्शक प्रमाण एकत्र किये हैं वे सब प्रधानतया जैनेतर दर्शन सम्बंधी प्रधान प्रधान ग्रन्थों में से लिये हैं ।
इस प्रमाणमाला के आधार से हर एक जैन, जैनेतर अभ्यासी यह जान सकेगा कि अनेकान्तवाद की व्यापकता कितनी अधिक है । इस के सिवाय अनेकान्तवाद के तात्त्विक, ऐतिहासिक व तुलनात्मक स्वरूप का निरूपण करने के लिए विशिष्ट विद्वानों को यह पुस्तक एक अनुपम प्रमाण संग्रह का काम देगी । अस्तु आशा है विद्वान् लोग इसे पढ़ कर इसका वास्तविक मूल्य स्वयं हो समझ लेंगे ।
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