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( १२०) " बुद्ध भगवान के वाद, वौद्ध धर्म "हीनयान" और "महायान" इन दो मुख्य शाखाओं में विभक्त हुआ उनमें भी हीनयान की, सौत्रांतिक और वैभाषिक, ये दो मुख्य शाखायें, और महायान की योगाचार और माध्यमिक ये दो मुख्य शाखायें हुई इस प्रकार मिलकर इन चार शाखाओं में वौद्ध तत्वज्ञान संकलित हुआ प्रतीत होता है । ( ४ ) तात्पर्य कि बुद्ध भगवान के पीछे जब उनकी शिक्षा पर दार्शनिक विचार उठे तो वौद्धों के सौत्रांतिक, वैभाषिक, योगाचार और माध्यमिक ये चार मुख्य भेद हुए। इनमें सौत्रांतिक और वैभाषिकों का जो सिद्धान्त है वह "हिन्द तत्वज्ञान नो इतिहास' के लेखक के साधार कथन के मुताबिक इस प्रकार है + वाह्म और अभ्यन्तर पदार्थ
x परन्तु छेवटे हनि याननी वे मुख्य शाखा सर्वास्ति. त्ववादीनी (१) सौत्रांतिक अने (२) वैभाषिक अने महायाननी वे मुख्य शाखा (१) योगाचार अने (२) माध्यमिक मली चार शाखामां बौद्ध तत्वदर्शन ग्रथित थयुं जणायछे।
(हिन्द तत्वज्ञाननो इतिहास पृ० १५०) * सिद्धान्त चन्द्रोदय तिर्क संग्रह टीका] में इनके और भी भेदों तथा उपभेदों का जिकर है परन्तु दार्शनिक विचार में वे उपयोगी नहीं हैं। _ + सर्वास्तित्ववादी ( सौत्रांतिक और वैभाषिक ) ना मत प्रमाणे भूत भौतिक समुदायरूप पदार्थों अने स्कन्धरूप समुदाय रूप पदार्थो जेने अपणे अनक्रमे वाह्यार्थ अने अांतर
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