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" अनिर्वचनीय" शब्द अनेकान्तवाद का ही रूपान्तर से परिचायक है। इस पर हम आगे चलकर यथाशक्ति अवश्य विचार करेंगे।
वेदान्त दर्शन में अनेकान्तवाद का कहां और किस रूप में जिकर है इसका उल्लेख हमने इस प्रकरण में कर दिया है अब इस पर अधिक विचार विवेकशील जनता स्वयं कर सकती है हमारी धारणा तो यही है कि वेदान्त दर्शन में भी पदार्थ व्यवस्था के लिये अनेकान्तवाद का कहीं २ पर आश्रय अवश्य लिया गया है जोकि उसके अनुरूप ही है ।
[ वौद्ध दर्शन ]
बौद्ध वर्शन के विषय में हमारा ज्ञान बहुत परिमित है हमने स्वतंत्र रूप से वौद्ध धर्म के तात्विक विषय का कोई ग्रन्थ नहीं पढ़ा अन्य दर्शन शास्त्रों में वौद्ध तत्वज्ञान के विषय में पूर्व पक्षरूप में जो कुछ लिखा गया है उतने मात्र का ही हमें यथा कथंचित् बोध है परन्तु हमारा विश्वास है कि साम्प्रदायिक व्यामोह के कारण प्रतिवाद के निमित्त अनुवाद रूप से जो कुछ लिखा जाता है वह वास्तविक अभिप्राय से कुछ भिन्न होता है । परन्तु कतिपय भारतीय विद्वानों ने ऐतिहासिक गवेषणा के उपलक्ष में वौद्ध तत्व ज्ञान पर जो कुछ लिखा है उसके आधार से हम इतना कहने का साहस अवश्य कर सकते हैं कि वौद्ध दर्शन में भी तात्विक विषय की व्यवस्था के लिये अपेक्षावाद का अवलम्बन अवश्य किया गया है ।
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