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________________ ( १२१ ) समुदाय बाहर और अन्दर की वस्तुओं का समूह-नित्य सत्ता वाला है और उसकी प्रतीति में क्षणिकत्व उसके साथ मिला हुआ है वह पदार्थ समूह-सन्तान अथवा प्रवाह रूप से नित्य और प्रत्येक रूप से क्षणिक-अनित्य है। .... यह कथन जैन दर्शन के अनेकान्तवाद [नित्या नित्यत्ववाद]-का असन्दिग्धतया समर्थन कर रहा है । - तथा विज्ञानवादी योगाचार का आलय विज्ञान भी "विकारिनित्य अथवा परिणामि नित्य पदार्थ होने से कथंचित् नित्यानित्य ही सिद्ध होता है + । इसके सिवाय माध्यमिक मत-शून्यवाद-के प्रधान आचार्य नागार्जुन ने बुद्ध भगवान के वास्तविक अभिप्राय को प्रकट करते हुए " माध्यमिक कारिका" के आरम्भ में जो कारिका लिखी है उससे अनेकान्तवाद की और भी पुष्टि होती है । अर्थ कहिये ते उभय नित्य अस्तित्व वालाछे । अने क्षणिकता ते तेनी प्रतीति ने वलगेलीछे। संतान अथवा प्रवाहरूपे ते नित्य छ भने प्रत्येक स्वभावे छणिक छ। (पृ० १५६) __ + 'श्रालय विज्ञान विकारि नित्य अथवा परिणामि नित्य पदार्थ छ। (हिन्द तत्व शान नो इतिहास पृ० १७६ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002141
Book TitleDarshan aur Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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