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( १०७ ) बस्तु गतौ शरीर गतास्तु दोषानात्मनि प्रसज्यन्ते आत्म गताश्च गुणा न शरीरे]
स्थूल सूक्ष्म चिदचिद्विशिष्ट [ स्थूल सूक्ष्म जड़चेतन शरीर वाला ] ब्रह्म ही कार्य अथच कारण रूप से अवस्थित है x इस सिद्धान्त के अनुसार कार्य कारण भाव से संकोच विकास खरूपता ब्रह्म को प्राप्त होगी जोकि अनिष्ट कारक है इस आक्षेप का समाधान करते हुए रामानुजाचार्य कहते हैं-"चिदचिद्वस्तु शरीर भूत ब्रह्म में" संकोच विकासात्मक कार्य कारण रूप अवस्था द्वय का सम्बन्ध होने से भी कोई आपत्ति नहीं क्योंकि संकोच विकास वस्तुतः ब्रह्ममे नहीं किन्तु उसके शरीर भूत [शरीर स्वरूप] चिदचित् [चेतन और जड़ वस्तु में है। शरीर गत दोषों की आत्मा में प्रसक्ति नहीं हो सकती और आत्मगत गुणों का शरीर में लेप नहीं होता। इसलिये परब्रह्म में संकोच विकास की स्वीकृति होने पर भी कोई दोष नहीं। ___ भला इससे बढ़कर अनेकान्तवाद की स्वीकृति का और कौनसा लेख हो सकता है ! प्रथम तो विशिष्ट को एक अथवा
*२।१।६ सूत्र का भाष्य पृ० ४११
(निर्णय सागर प्रेस बम्बई) x अत: स्थूलसूक्ष्म चिदचित्पूकारक ब्रह्मैवकार्य कारणं चेति ब्रह्मोपादानं जगत् ।
[श्री भाष्य पु० १२०-१।१।१०]
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