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( १०५.) [श्री भाष्य ]
विशिष्टाद्वैत मत के प्रधान आचार्य श्री रामानुजस्वामी ने भी ब्रह्म सूत्र पर 'श्री भाष्य" नाम का एक वृहत्काय ग्रन्थ लिखा है । रामानुजाचार्य यद्यपि अनेकान्तवाद के पूर्ण विरोधी हैं
"प्रस्थानत्रयी उपर शुद्धाद्वैत मतनुंस्थापन श्री वलभाचार्येकर्य अने विशिष्टाद्वैत मतनं स्थापन श्री रामानुजे कर्य
............."ते उपरांत बीजी वे शाखाना वैष्णव मतो प्रस्थानत्रयी (गीता उपनिषत् और ब्रह्म. सूत्र) ऊपर सिंदान्त रचेले तेमां निम्बार्क मत कइंक बधारे जनाले अनेते भट्ट भास्कर (भास्कराचार्य जिसके भाष्य का उल्लेख पीछे आ चुका है वह) ना लगभग समकालीन जणायके तेमतमा भेद अने अभेद वन्ने समकक्षाए खराछे एवोतात्विक सिद्धान्तछे अनेतेथी तेमां श्रा दृश्य जगत् स्वाभाविक भेदा भेद वालुं ब्रह्म के एवोनिर्णय के ।
(हिंद तत्वज्ञाननो इतिहास पृ० २८१ जुविली प्रेस अहमदाबाद) नोट-सुना है कि इस भाष्य पर निम्वार्क सम्प्रदाय के किसी विद्वान् ने एक बड़ी भारी व्याख्या लिखी है और वह मुदित भी हो चुकी है हमने उसकी तलाश भी कराई मगर वह उपलब्ध नहीं हो सकी यदि मिल जाती तो सम्भव था कि उस पर से अनेकान्तवाद के विषय में उक्त भाष्य की अपेक्षा कुछ अधिक प्रकाश पाता । (ले०)
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