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( १०४ ). भेद नहीं । हमारे विचार में तो "विज्ञानामृत' भाष्य का उक्त लेख किसी सीमा तक अनेकान्तवाद का सम्पूर्ण रूप से समर्थक है ऐसा कहने में जरा भी अतिशयोक्ति नहीं ।
[ वेदांत पारिजात सौरभ ] "निम्बार्काचार्य ने ब्रह्म सूत्र पर "वेदान्त पारिजात सौरम" नाम का एक बहुत ही छोटा सा भाष्य लिखा है। उसमें
"तत्तुसमन्वयात् (१।१ । ४) इस सूत्र पर निम्बार्काचार्य लिखते हैं
"सर्व भिन्ना भिन्नो भगवान् वासुदेवो विश्वात्मैव जिज्ञासा विषय इति"
(१० २ विद्या विलास यंत्रालय बनारस) अर्थात् भिन्नाभिन्न स्वरूप विश्वात्मा भगवान् वासुदेव ही जिज्ञासा का विषय है।
निम्बार्काचार्य भेदाभेद वाद के पूरे अनुयायी हैंइसलिये उनका कथन अनेकान्तवाद का कहां तब पोषक है इसकी अधिक चर्चा करनी अनावश्यक है पाठक स्वयं समझ सकते हैं।
x निम्वर्काचार्य के सिद्धान्त के विषय में हमारे इस कथन का समर्थन, गुजरात के साक्षर विद्वान् श्रीयुत नर्मदा शंकर देव शंकर महता बी० ए० के एक लेख से भली प्रकार होता है। वह लेख गुजराती भाषा में इस प्रकार है
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