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( १०२ ) ब्रह्म सत्यं इत्यादि श्रुति ने ही स्पष्ट कहा है और श्रुति के समान ही स्कन्द पुराण में लिखा है-चैतन्य की अपेक्षा यह समस्त संसार असत् और घट कुण्डादि की अपेक्षा से सत् है इससे ब्रह्म में सत्यत्व, असत्वत्व इन दोनों ही धर्मों की उपलब्धि प्रमाणित है।
विज्ञान भिक्षु के इस लेख से प्रतीत होता है कि उनको, अपेक्षाकृत भेद को लेकर पदार्थ में सत्वासत्व और भेदाभेद का सह अवस्थान अभीष्ट है । और भेदाभेद की सह अवस्थिति में जो विरोध बतलाया जाता है उस पर विज्ञान भिक्षु की शंका समाधि इस प्रकार है।
"ननु विरुद्धौ भेदाभेदी कथमेकत्र संभवेतामितिचेन्न । अन्योन्याभाव लक्षण भेदस्याविभाग लक्षणेनाभेदेना विरोधात् । विभागाविभागरूपयोरपि भेदाभेदयोः कालभेदेन व्यवहार परमार्थ भेदेनचाऽविरोधाच्च । नचा यमभेदो गौणइति वाच्यं,लवणंजलम भूत्, दुग्धं जलमभूत्-यत्रत्वस्य सर्वमात्मैवाभूत्..."इत्यादि लोकवेदयोः प्रयोगवाहुल्येनाविभागस्यापि मुख्याभेदत्वात् भिदिर विदारणे इत्यनुशासनाच्च ।
परमात्माजगद्रपी सर्वसाक्षी निरंजनः । भिन्नाभिन्न स्वरूपेण स्थितोऽसौ परमेश्वरः॥
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