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( १०१ ) . इतिकूर्म नारदीय वाक्येनान्योन्या भाव संमि श्रणरूपयोर्भेदाभेदयो रेव पारमार्थिकत्व बचनाचेति । अतएवोक्तम्
त एते भगवद्रूपं विश्वं सदसदात्मकम् ।
आत्मनोऽव्यतिरेकेण पश्यन्तो व्यचरन् महीम् ॥ ' एवमेव कार्य कारणयोः धर्म धर्मिणोश्चोभयो रेवलक्षण भेद सत्वेपि संमिश्रणरूप एवाभेदो वोध्या” (१) ' अर्थात्-"तत्व के चिन्तक योगी लोग शक्ति और शक्ति वाले का भेदाभेद ही देखते हैं" इस कूर्म और नारद पुराण के वाक्य से प्रतीत होता है कि भेदाभेद ही परमार्थ है । इसलिये कहा कि “यह सदसत् रूप विश्व-संसार भगवान् का ही रूप है। इसी प्रकार कार्य कारण और धर्म धर्मी का लक्षण रूप भेद होने पर भी संमिश्रण रूप से अभेद है । .. (२) ब्रह्म सत्यमिति श्रुत्यैव स्पष्टमुक्तम् । तथा,
चैतन्यापेक्षयाप्रोक्तं व्योमादि सकलं जगत् । असत्यं सत्यरूपंतु कुम्भ कुण्डाद्यपेक्षया ।
इति स्कान्देऽप्युक्तश्रुति समानार्थके ब्रह्मणएव सत्यासत्यत्वं लब्ध मिति (२) (१) (पृष्ठ १११ विद्याविलास प्रेस काशी। (२) पृ० १६३ ।
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