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( १०० ) स्त्री के बचन की तरह श्रुति बचन का भी अनादर कर दिया जाय । जब कि एक श्रुति अभेद का प्रतिपादन करती है और दूसरी भेद का तब यह कहां का न्याय है कि एक को मानना और दूसरी का तिरस्कार कर देना, नहीं, दोनों को ही स्वीकार करना चाहिये इसलिये भेद और अभेद दोनों का हो ग्रहण करना उचित हैx इन लेखों से प्रतीत होता है कि भास्कराचार्य अनेकान्तवाद के अर्थतः बहुत बड़ी सीमा तक प्रतिपादक और समर्थक हैं।
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[विज्ञान भिक्षु का विज्ञानामृत भाष्य ] ___ महामति भास्कराचार्य की भांति यति प्रवर विज्ञान भिक्षु ने भी ब्रह्म सूत्रों पर विज्ञानामत नाम का एक छोटा सा भाष्य लिखा है। उसमें आप लिखते हैं- . (१) "शक्ति शक्तिमतोर्भेदं पश्यन्ति परमार्थतः। .
'अभेदं वानुपश्यन्ति योगिनस्तत्व चिन्तकाः ॥
.. x अत्रोच्यते यथैवेय मेवाभेदं दर्शयति तथा पूर्व मुदाहृतं । प्रात्मनितिष्टनितिं च भेदं दर्शयति किन पश्यसि नह्यस्याः श्रतेर्वचनं सुभगा वचन मिवानादरणीयम् प्रामाण्य तुल्यत्वात् अतो भेदाभेदो गृहीतव्यो। ... (स्मृतिकारों नेभी प्रतिद्वैधंतु यत्र स्यात्तत्रधर्माबुभौ स्मृती" इस वाक्य से भास्कराचार्य के कथन का कथमपि समर्थन किया है।
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