________________
वही मनुष्यं कह सकता है जो कि प्रमाण प्रमेयके तत्व से सर्वथा अनभिज्ञ है। वस्तु में एकत्व हमको जिस प्रमाण से प्रतीत होता है उसी से यदि उसमें नानात्व का भान हो तो फिर उसको क्यों न स्वीकार किया जाय ? जो प्रमाण से सिद्ध है उसमें विरोध की आशंका ही कैसी ? प्रमाण द्वारा संसार की गो महषी और अश्वादि सभी वस्तुएं परस्पर मिन्नाभिन्न रूप से प्रतीत होती हैं। वस्तु एकान्ततया भिन्न अथवा अभिन्न रूप ही है ऐसा कहीं पर भी कोई पुरुष दिखलाने को समर्थ नहीं हो सकता । सत्ता-शेयत्व और द्रव्यादि सामान्यरूप से सभी वस्तुएं परस्पर में अभिन्न हैं तथा व्यक्तिरूप से उनका परस्पर में भेद है । इस प्रकार भेदाभेद उभयरूप से पदार्थों की प्रतीति होती है इसमें विरोध क्या ? विरोध और अविरोध में प्रमाण ही तो कारण है ? प्रमाणानुरोध से वस्तु में जैसे एकत्व का भान होता है वैसे ही उसमें अनेकत्व भी अनुभव सिद्ध है । एक वस्तु सदा एक रूप में ही स्थित रहती है यह कोई ईश्वर का कहा हुआ नहीं अर्थात् यह कथन किसी प्रकार से भी प्रामाणिक नहीं कहा जा सकता [शंका]-जिस प्रकार शीत और उष्ण का आपस में विरोध है वह एक जगह पर नहीं रह सकते इसी तरह भेदाभेद में भी विरोध अवश्य है आप कैसे कहते हैं कि भेदाभेद में विरोध नहीं [ उत्तर]-यह अपराध आपकी बुद्धि का है जो कि आपको भेदाभेद में विरोध प्रतीत होता है-वस्तु का इसमें कोई अपराध नहीं। भेदाभेद का, छाया और धूप की तरह भिन्न देशवर्ती होना और शीत उण की तरह विरोधी होना इत्यादि जो कथन हैं वह कार्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org