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( ८५ ) [ न्यायदर्शन की वैदिकवृत्ति] महर्षि गौतम रचित न्याय सूत्रों पर वात्स्यायन भाष्य के अतिरिक्त न्यायवार्तिक, तात्पर्य टीका, तात्पर्य परिशुद्धि, जयन्त वृत्ति और न्याय वृत्ति आदि कई एक प्राचीन व्याख्याग्रन्थ उपलब्ध होते हैं तथा अर्वाचीन कतिपय विद्वानों ने भी संस्कृत तथा हिन्दी भाषा में उक्त दर्शन पर अनेक प्रकार के व्याख्या ग्रन्थ लिखे हैं और वे उपलब्ध भी होते हैं। उनमें से प्रस्तुत विचार के. लिये हमारे सामने इस समय वैदिकमुनि स्वामि हरि प्रसाद जी उदासीन की लिखी हुई "वैदिक वृत्ति" उपस्थित है। वृत्ति क्या है न्याय शूत्रों पर एक खासा भाष्य है । हरिप्रसाद जी ने केवल न्याय दर्शन को ही नहीं किंतु सांख्य, योग और वैशेषिक आदि सभी दर्शनों को अपनी वैदिक वृतियों से अलंकृत करके उनकी सौभाग्य श्री को दोबाला कर दिया है ! तदनुसार आपने ऋषि व्यासदेव प्रणीत ब्रह्मसूत्रों पर भी अपनी वैदिक वृत्ति द्वारा बड़ा अनुग्रह किया है अर्थात् अन्य दर्शनों की भांति उन पर भी आपने एक सर्वाङ्ग सुन्दर वैदिक वृत्ति नाम का भाष्य लिखा है।
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नोट-स्वामि हरिप्रसाद जी अभी विद्यमान हैं वर्तमान आर्य समाज के साधु संन्यासियों में आप आदरणीय हैं परन्तु कई बातों में वर्तमान मार्यसमाज से आपका मतभेद भी है। माप मुक्तात्मा की पुनरावृत्ति नहीं मानते । कहीं कहीं पर तो आपने आर्यसमाज के जन्मदाता स्वामि दयानन्द सरस्वती की बातों को स्पष्ट शब्दों में प्रमाण विरुद्ध बतलाया है।
(देखो भापका लिखा हुमा वैदिक सर्वस्व पु० ४ से लेकर)
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