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अपेक्षा सत्व और पर घटादि-रूप की अपेक्षा से असत्व है इससे अर्थात् सिद्ध हुआ कि इनमें घटादि पदार्थों में- स्वरूप और पर रूप से सत्वा सत्व दोनों ही रहते हैं ।
[ - न्याय दर्शन का वात्स्यायन भाष्य ]
महर्षि गौतम प्रणीत न्याय दर्शन के सुप्रसिद्ध भाष्यकार वात्स्यायन मुनि ने भी पदार्थ विवेचना के लिये एक दो स्थानों पर अनेकान्तवाद का अनुसरण किया है ऐसा प्रतीत होता है । पाठक उनके लेख को भी देखें ?
"विमृश्य पक्षप्रतिपक्षाभ्यामर्थावधारणं निर्णय: "
(१-१-४१) इस सूत्र के भाष्य में आप लिखते हैं
" एतच्च विरुद्धयो रेक धर्मिस्थयोर्बोधव्यं, यत्र तु धर्मसामान्यगतौ विरुद्धोधर्मी हेतुतः सम्भवतः तत्र समुच्चयः हेतुतोऽर्थस्य हेतुतोऽर्थस्य तथाभावोपपत्तेः । इत्यादि"
भावार्थ- पक्ष प्रतिपक्ष द्वारा विचार करके पदार्थ का जो निश्चय किया जाता है उसे निर्णय कहते हैं । परन्तु यह विचार किसी एक धर्मी में स्थित विरुद्ध धर्मों के विषय में ही है जहाँ पर धर्मी सामान्य में विरुद्ध धर्मों की सत्ता प्रामाणिक रूप से सिद्ध हो वहाँ पर तो समुच्चय ही मानना चाहिये क्योंकि प्रामाणिक रूप से ऐसा ही सिद्ध है । अर्थात् वहाँ पर परस्पर विरुद्ध दोनों ही धर्मों को स्वीकार करना चाहिये ।
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