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असत् भी, अथवा यूं कहिये कि घट में जैसे सत्व मौजूद है वैसे असत्व भी विद्यमान है । यद्यपि उपराउपरि देखने से तो यह बात कुछ बिलक्षण और संदिग्ध सी प्रतीत होती है परन्तु जरा ठंडे दिल से इस पर कुछ विचार किया जाय तो यह सिद्धान्त बड़ा ही सुव्यवस्थित और बस्तु स्वरूप के सर्वथा अनुकूल प्रतीत होगा । घट है और नहीं इसका यह तात्पर्य नहीं कि घट जिस रूप से है उसी रूप से नहीं, किंतु इसका अर्थ यह है कि घट अपने स्वरूप की अपेक्षा तो 'है' और पर रूप की अपेक्षा से 'नहीं' अतः स्वरूप की अपेक्षा आस्तित्व और पर रूप की अपेक्षा नास्तित्व एवं अस्तित्व नास्तित्व ये दोनों ही धर्म, पदार्थ में अपनी सत्ता का प्रामाणिक रूप से भान कराते हुए घटादि पदार्थ को सदसत् उभय रूप सिद्ध कर रहे हैं । यदि घट को स्वरूप की तरह पर रूप से भी सत् मान लिया जाय तब तो वह पट रूप से भी सत् ही ठहरेगा इस प्रकार वस्तु का जो प्रति नियत स्वरूप है वह बिगड़ जायगा और घट पट में जो भेद दृष्टिगोचर होता है उसका उच्छेद ही हो जावेगा इसलिये स्वरूप की अपेक्षा सत् और पर
(ग) तथैकान्तस्वमेकान्तासत्वं च वार्तमेव तथाहि सर्वभावानांहि सदसदात्मकत्व मेव स्वरूपम् । एकान्तसत्वे वस्तुनो वैरूप्यंस्यात् । एकातासत्वे च निस्स्वभावता भावानां स्यात् । तस्मात्स्वरूपेण सत्वात् पर रूपेण चासत्वात् सदसदात्मकं वस्तु सिद्धम् यदाहु:--
सर्व मस्तिस्वरूपेण पररूपेण नास्तिच । अन्यथा सर्व सत्वंस्यात् स्वरूपस्याप्यसंभवः ॥ (हरिभद्रसूरि कृत षड् दर्शन समुचय टीकायां मणिभद्रः )
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