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(.८०) इसी बात का उल्लेख किया है x इसलिये वस्तु (पृथिवीत्वादि) केवल सामान्य अथवा विशेष रूप ही है ऐसा एकान्त नियम नहीं किन्तु सामान्य रूप होकर विशेष रूप भी है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करते हुये कणाद ऋषि ने भी अनेकान्तवाद का अनुसरण किया ऐसा स्पष्ट प्रतीत होता है । अधिक विवेचन की आवश्यकता नहीं।
[पदार्थ में सत्वासत्व ] कोई भी पदार्थ एकान्त रूप से सत् अथवा असत् नहीं वह जैसे सत् है वैसे असत् भी है ऐसा जैन दर्शन का मंतव्य है वह पदार्थ में सत्व और असत्व इन दोनों ही धर्मों की सत्ता को मानता है। उसके मत में घट सत् भी है और
. x-परमपिसामान्यमपरमपितथा! परन्तु सामान्यं विशेषसंज्ञा मपिलभते • यथा द्रव्य मिदमित्यनुवृत्तिप्रत्ययेसत्ययेव नायंगुणो नेदकर्मेतिविशेष प्रत्ययः तथाच द्रव्यत्वादीनां सामान्यानामेवविशेषत्वम् । (वै० द. गुजराति प्रेस पृ०१२) भाष्यम्-व्यत्वं पृथिवीत्वापेक्षया सामान्य, सत्तापेक्षया विशेष इति
(पृ०५३) १*-(क)-सदसद्रूपस्य वस्तुनो व्यवस्थापितत्वात [४० ६३]
(ख)-यतस्ततः स्वद्रव्यक्षेत्रकाल भाव रूपेणसद्वर्तते पर द्रव्य क्षेत्र काल भाव रूपेणासत् ततश्च सच्चासचभवति अन्यथा तदभाव प्रसंगात्।(४० ४)
[अनेकान्त जयपताकायां हरि भद्रसरिः]
अनकान्त
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