________________
विनाश वाली भी हो । यह कभी नहीं हो सकता कि परस्पर विरोधी धर्म भी एक स्थान में रह सकें यदि ऐसा ही है तब तो वन्हि में भी शीतता की प्रतीति होनी चाहिये इस प्रकार तो विश्व भर के पदार्थों में संकरता का प्रसार होजायगा (x) - जाति भी अनित्य और विनाशी हो जायगी तथा व्यक्ति भी नित्य एवं अविनाशी ठहरेगी । इसलिये परस्पर विरुद्ध स्वभाव रखने वाले पदार्थों का अभेद मानना कदापि युक्तियुक्त नहीं कहा जा सकता।
इस प्रकार जाति व्यक्ति को सर्वथा विभिन्न मानने वालों के इस गुरुतर आक्षेप का समाधान करते हुए पार्थसार मिश्र कहते हैं हमारे मत में इस प्रकार का कोई भी दोष उपस्थित नहीं किया जा सकता । यथार्थ में तो वस्तु में वस्तुत्व ही यह है कि वह अनेक विध आकारों को धारण किये हुए हो । अथवा यूं कहिये कि संसार की सभी वस्तुएं अनेक विध आकारों को धारण कर रही हैं + । अनेक विध आकार-स्वरूपधर्म की अधिकरणता ही वस्तु में वस्तुत्त्व है । अतः वस्तु, किसी आकार स्वरूप से नित्य और किसी आकार से अनित्यत्वादि धर्मों को धारण कर रही है इसलिये विरोध की कोई आशंका नहीं है । अतएव आकार- स्वरूप-अपेक्षा] भेद से विरुद्ध
VA
(x) योकत्र वस्तुनि विरुद्ध धर्म समावेश: स्यात्तदा बन्हौ शैत्यमपिस्यादित्येवं त्रैलोक्य संकरःस्यात् । ( टीकायां सुदर्शनाचार्यः)
+-यद्वस्तु नानाकारं तदस्तु, किंवा तद्वस्तु सांसारिकवस्तु (टीका)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org