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उत्तर-हमारे मत में तो वस्तु मात्र ही अनेकान्त है एकान्त नहीं । जहाँ पर अवस्तु रूप ज्ञान का अनेक रूप से भान हो वहाँ पर ही संशय होने से उक्त ज्ञान को अप्रमाणिकता की प्राप्ति होती है यथा स्थाणुर्वा पुरुषोवा परन्तु यहाँ पर तो वस्तु का स्वरूप ही , अनेकान्त अंगीकार किया गया है । इसलिये उक्त स्थल में अप्रामाणिकता का सन्देह नहीं हो सकता । क्योंकि वस्तु का स्वरूप ही इस प्रकार का है । इसके सिवाय, वस्तु को अनेकान्त रूप बतलाने वाला श्लोक वार्तिक का एक और स्थल भी अवलोकन करने योग्य है।
x संवित्तश्चाविरुद्धाना मेकस्मिन्नप्यसम्भवः ।
एकाकारं भवेदेक मिति नेश्वर भाषितम् ॥२१॥ तथैव तदुपेत्तव्यं यद्यथैवोपलभ्यते ।
नचाप्यैकान्तिकं तस्य स्यादेकत्वंच वस्तुनः ॥२२०॥ वस्तु सर्वथा एकान्त रूप ही है यह ईश्वर का कहा हुआ नहीं अर्थात् एक वस्तु सर्वदा एक रूप में ही रहती है इसमें कोई प्रमाण नहीं।
____यदुक्तं प्रतीति - भेदादेकस्यापि वह्वाकारत्त्वमिति तद्विवृणोति, एकेति । न ह्येक मेकाकारमेवेति किंचन प्रमाणमस्ति । तेनयद्यादृशमेकाकार मनेकाकारं वोपलभ्यतेतत्तथैवाङ्गीकर्तव्यमिति । किन्त्वेकत्त्वमपि तस्य वस्तुनो न केनचिद् व्यवस्थापितम्-यतोऽनेकाकारता न स्यात् तदपि ह्यनेक धर्ममवगम्यमानं तेनात्मना नैकतामपि भजते । ( व्याख्या पृष्ठ १३१ प्र० शून्यवादः)
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