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________________ ( ५६ ) दोनों ही दलों की युक्तियें अपने २ पक्ष के समर्थन में समर्थ हैं इनमें से किसी एक का भी सर्वथा स्वीकार अथवा त्याग नहीं हो सकता, प्रत्युत दोनों ही आदरणीय हैं, अतः भेद अथच अभेद दोनों ही सिद्ध होगये । अवयव, अवयवी के भेद और अभेद को एकान्तरूप से सत् अथवा असत् नहीं बतलाया जा सकता इसलिये इनको एकान्त रूप मानना मिथ्या है। शंका-अववय अवयवी को भिन्नाभिन्न उभयरूप मानने पर दो में से किसी एक पक्ष का भी निश्चय न होने से संशय ज्ञान की तरह यह विचार भी अप्रमाणिक अतएव भ्रान्त ठहरेगा । जैसे एक रुण्ड मुण्ड दरख्त में " थाणुर्वा पुरुपोवा" यह स्थाणु है या पुरुष ऐसा संशय होने से वह ज्ञान या निश्चय प्रमाणिक नहीं कहला सकता । इसी प्रकार अवयव अवयवी के भेदाभेद ज्ञान को भी अनिश्चयात्मक होने से अप्रमारिकता प्राप्त होगी । येचैकान्तिकं भेदमभेद वाऽवयविनः समाश्रयन्ते तैरेवायमनेकान्तवादः सावित इत्याह कैश्चिदितिसार्देन उभयोक्तयुक्ति वलादेवोभय सिद्धिरिति । यतश्चाऽन्यत्व मनन्यत्वं च द्वयं सदसत्तया न शक्यं दर्शयितुं, अतश्चित्र बदनेक रूपत्वादत्रैक रूपाऽभ्युपगमो मृषेत्याह तत इति । , नन्वेव मन्यानन्यत्व बादिनामन्यतमस्या नबधारणात स्थाणुर्वा पुरुषो वेनिवत्संदेहान किंचिदप्यन्यानन्यत्वादिक बाधितं किं सिध्ये दत ग्रह बस्त्वितिसार्द्धन - वस्तु विषयोह्यस्माकमनेकान्तवाद नैकाकारं वस्त्विति । यत्रतुज्ञान मेवावस्तुरूप मनेकमवभासते किमये स्थाणुः किंवा पुरुषइति तत्र संशयादप्रामाण्यं भवति इहत्वनेक रूपमेववस्त्विति निर्णयात्कुतोऽ प्रमाण्यमिति । ( न्याय रत्नाकर व्याख्या पृ० ६३३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002141
Book TitleDarshan aur Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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